महाकाल के साथ ही काल का कदमताल
देवाधिदेव महादेव, पालनहार और तारनहार भी लेकिन उनके दरबार की दरो दीवार ने स्वाभाविक तौर पर वक्त के तमाम वार सहे। कई भवन रखरखाव के अभाव में ढहे तो ऐसे तमाम स्थान जिनका अस्तित्व भी नहीं रहा। धर्मशास्त्रीय विधान से बने इस परिसर के इतिहास का न्यास परिषद स्केच बनवाएगी। इसके लिए पुरानी तस्वीरें और छाया चित्र जुटाएगी।
वाराणसी। देवाधिदेव महादेव, पालनहार और तारनहार भी लेकिन उनके दरबार की दरो दीवार ने स्वाभाविक तौर पर वक्त के तमाम वार सहे। कई भवन रखरखाव के अभाव में ढहे तो ऐसे तमाम स्थान जिनका अस्तित्व भी नहीं रहा।
धर्मशास्त्रीय विधान से बने इस परिसर के इतिहास का न्यास परिषद स्केच बनवाएगी। इसके लिए पुरानी तस्वीरें और छाया चित्र जुटाएगी। अगले 200 साल तक का ब्ल्यू प्रिंट बनाएगा। पचास वर्षो में किए जाने वाले विकास कार्यो का खाका भी खींचा जाएगा। मंदिर प्रशासन ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। इस दिशा में शिखरों की मजबूती का आकलन करने अगले सप्ताह रुड़की से आ रही तकनीकी विशेषज्ञों की टीम के दौरे को भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिग मंदिर की व्यवस्था देखने गए न्यास अध्यक्ष डा. अशोक द्विवेदी ने गुरुवार को बताया कि इतिहास के गर्त में समाए मंदिर के भूत, वर्तमान और भविष्य के भूगोल का तकनीकी व धर्मशास्त्रीय आकलन कराया जाएगा।
न्यास परिषद में विमर्श कराकर निष्कर्षो को शासन व मुख्यमंत्री के समक्ष रखा जाएगा।
कई साल पुराना- वर्तमान मंदिर का निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 में कराया। इसके पांच साल बाद नौबतखाना बनवाया गया। सन् 1839 में पंजाब केसरी महाराज रणजीत सिंह ने शिखरों को स्वर्ण युक्त किया। 1983 में सरकार ने मंदिर का अधिग्रहण किया और जर्जर हो आए तारकेश्वर व रानी भवानी परिसर को गिरा दिया गया।
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