जानें तमोगुण की अधिष्ठात्री देवी महाकाली के अवतरित होने की कथा
मां महाकाली भगवान शिव की अर्द्धांगनी देवी पार्वती का ही एक रूप हैं। आइये जाने उनके अवतरित होने की रोचक कथा।
ब्रह्मा जी ने किया आह्वन
कहते हैं एक बार जब सम्पूर्ण जगत् जलमग्न था और भगवान विष्णु शेषनाग की शय्या पर योगनिद्रा में थे, उसी समय उनके कानों के मैल से मधु और कैटभ नाम के दो भयंकर असुर उत्पन्न हुए। वे दोनों ब्रह्माजी का वध करने को तैयार हो गये। भगवान विष्णु के नाभिकमल में विराजमान प्रजापति ब्रह्माजी ने जब उन दोनों असुरों को अपने पास आया और भगवान को सोया हुआ देखा, तब उन्होंने सहायता के लिए भगवान के नेत्रों में निवास करनेवाली योगनिद्रा का स्तवन आरम्भ किया।
ब्रह्मा की प्रार्थना
भगवती निद्रादेवी को प्रसन्न करने के लिए ब्रह्मा ब्रह्माजी ने कहा, हे देवि तुम्हीं इस जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और संहार करनेवाली हो। तुम्हीं जीवनदायिनी सुधा हो। तुम्हीं संध्या, सावित्री तथा परम जननी हो। तुम्हीं इस ब्रह्माण्ड को धारण करती हो। तुम्हीं से इसका पालन होता है और सदा तुम्हीं कल्प के अन्त में सबको अपना ग्रास बना लेती हो। देवि इस जगत् की उत्पत्ति के समय तुम सृष्टिरूपा हो, पालनकाल में स्थितिरूपा हो और कल्पान्त के समय संहाररूप धारण करनेवाली हो। तुम्हीं महाविद्या, महामाया, महामेधा, महास्मृति, महामोहरूपा, महादेवी और महासुरी हो। तुम्हीं तीनों गुणों को उत्पन्न करनेवाली सबकी प्रकृति हो। भयंकर कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि भी तुम्हीं हो। तुम्हीं श्री, तुम्हीं ईश्वरी, तुम्हीं ह्री और तुम्हीं बोधस्वरूपा बुद्धि हो। लज्जा, पुष्टि, तुष्टि, शान्ति और क्षमा भी तुम्हीं हो। तुम खड्गधारिणी, शूलधारिणी, घोररूपा तथा गदा, चक्र, शंख और धनुष धारण करनेवाली हो। जितने भी सौम्य एवं सुन्दर पदार्थ हैं, उन सबकी अपेक्षा तुम अत्यधिक सुन्दरी हो।परमेश्वरी तुम्हीं हो। मुझको, भगवान शंकर को तथा भगवान विष्णु को भी तुमने ही शरीर धारण कराया है; अत: तुम्हारी स्तुति करने की शक्ति किसी में नहीं है। इसलिए हे देवि ये जो दोनों असुर मधु और कैटभ हैं, इनको मोह में डाल दो और जगदीश्वर भगवान विष्णु को शीघ्र ही जगा दो। साथ ही उनको असुरों को मार डालने की बुद्धि दो।
प्रकट हुईं महाकाली
इस प्रकार स्तुति करने पर तमोगुण की अधिष्ठात्री देवी योगनिद्रा भगवान के नेत्र, मुख, नासिका, बाहु, हृदय और वक्ष:स्थल से निकलकर ब्रह्माजी के समक्ष उपस्थित हो गयीं। उन्होने अपने दस हाथों में खड्ग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिघ, शूल, भुशुण्डि, मस्तक और शंख धारण कर रखे थे। उनके समस्त अंग दिव्य आभूषणों से विभूषित थे। देवी के प्रयास से ही योगनिद्रा से मुक्त हो भगवान शेषनाग की शय्या से जाग उठे। उन्होंने दोनों असुरों को देखा जो ब्रह्माजी को खा मारने का विचार कर रहे थे। तब विष्णु जा ने दोनों के साथ पांच हजार वर्षो तक बाहुयुद्ध किया। इसके बाद महामाया ने जब दोनों को मोह में डाल दिया तो वे बलोन्मत्त होकर भगवान से ही वर मांगने के लिए कहने लगे। भगवान ने कहा कि यदि मुझ पर प्रसन्न हो तो मेरे हाथों मारे जाओ। असुरों ने कहा जहां पृथ्वी जल में डूबी न हो, वहीं हमारा वध करो। तब भगवान ने दोनों के मस्तकों को अपनी जांघ पर रख कर चक्र से काट डाला।