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हुरियारों पर बरसाने को लठ्ठों को पिला रहीं तेल, खा रहीं मेवा

रंगों में रंग मिल जाते हैं। होली के रंग तो वही हैं, जो सबको मिला दें। ब्रज हो तो कहो कि सबको बावरे बना दें। ब्रज में सबसे रंगीली और रसीली बरसाने की लठामार होली में तो न जाने कितने रसरंग होते हैं। कृष्ण जन्म भूमि की होली भी कुछ

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 23 Feb 2015 03:35 PM (IST)Updated: Mon, 23 Feb 2015 03:38 PM (IST)
हुरियारों पर बरसाने को लठ्ठों को पिला रहीं तेल, खा रहीं मेवा

मथुरा। रंगों में रंग मिल जाते हैं। होली के रंग तो वही हैं, जो सबको मिला दें। ब्रज हो तो कहो कि सबको बावरे बना दें। ब्रज में सबसे रंगीली और रसीली बरसाने की लठामार होली में तो न जाने कितने रसरंग होते हैं। कृष्ण जन्म भूमि की होली भी कुछ खास होती है। इस बात तो इसमें एक नई मिठास होगी।

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राधारानी की जन्मस्थली रावल की मुस्लिम महिलाएं सद्भाव की धारा बरसाएंगी। होरी पर हुरियारों पर प्रेमपगीं लाठियां बरसाएंगी। इसके लिए वह बेकरार हैं। इसके लिए वे चौका-चूल्हे से फुरसत निकाल तैयारी में जुटी हैं। ल_ को तेल पिला रही हैं और उसे चलाने को मेवाएं खा रही हैं। ब्रज की अनूठी होली में हर कोई रंगों से सराबोर होता है। मस्ती ऐसी कि किसी भी धर्म से जुड़े हों, इसका रस लेने से स्वयं को रोक नहीं पाते। पुरुष ही नहीं, महिलाएं भी लाठियां चलाती हैं। होली से चार दिन पूर्व श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर रंगभरनी एकादशी के दिन भव्य आयोजन होता है। इसमें राधारानी की जन्मस्थली रावल गांव की हुरियारिनें लठामार होली खेलने आती हैं। इस बार ये आयोजन एक मार्च को होगा। लठामार होली के लिए रावल गांव से इस बार मुस्लिम महिलाएं भी आने को बेकरार हैं। रावल गांव की उस्मानी हुरियारों पर लठ बरसाने के लिए बेताब हैं। कहती हैं कि वह लठामार होली के लिए तैयारी कर रही हैं। घर में ही एक लाठी मिल गई है, उसे तेल पिला रही हैं।

नजमा कहती हैं कि लठामार होली के नाम से ही मन में अलग सी उमंग छा रही है। वह होली के दिन का इंतजार कर रही हैं। लहंगा-फरिया भी तैयार कर लिया है। सज धजकर राधा की सखी बनेंगी और कृष्ण के सखाओं पर ल_ बरसाएंगी। होली खेलने की बात करते ही अमीना के चेहरे पर अजीब चमक आ जाती है। वे दावा करती हैं कि ल_ की बरसात देख नहीं लगेगा कि वे पहली बार लठामार होली खेलने आई हैं। जमकर ल_ चलाने का अभ्यास कर रही हैं।

जिस दिन वह लठामार होली खेलेंगी, तो कृष्ण के सखा अपने को बचा नहीं सकेंगे। हुरियारिनों ने बताया कि वे तो राधारानी की सखियां हैं। रावल गांव में ब्याहकर आने को अपना सौभाग्य मानती हैं। गांव के ज्यादातर मुस्लिम परिवार ब्रज के सभी त्योहारों को मनाते हैं। बताया कि राधाष्टमी पर हम लोग तो बरसाना भी जाते हैं। यहां तो सभी में राधाजी की सखियों का भाव

राधारानी मंदिर के पुजारी ललित मोहन कल्ला कहते हैं कि रावल गांव श्रीकृष्ण की शक्ति राधारानी की जन्मस्थली है। यहां सभी भाईचारे से रहते हैं। सभी महिलाऔं में राधारानी की सखियों का भाव है। हिंदू -मुस्लिम जैसी कोई बात ही नहीं है। गांव में भाईचारा इसकी मिसाल है। इसी भाव के साथ सखियां लठामार होली की तैयारी करती हैं।

कई वर्षो बाद गुर्जर महिलाओं का आया नंबर- श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर लठामार होली खेलने के लिए रावल गांव से 60 लोगों का ग्रुप ही जाता है। इसमें 30 हुरियारिनें और 30 हुरियारे होते हैं। करीब ढाई हजार की आबादी वाले इस गांव से हर परिवार या हर व्यक्ति को शामिल करना संभव नहीं है। हुरियारिनों और हुरियारों के चयन का दायित्व राधारानी मंदिर के पुजारी ललित मोहन कल्ला निभाते हैं।

इस बार इस ग्रुप में पहली बार गुर्जर महिलाओं को लठामार होली खेलने का मौका मिला है। ये महिलाएं भी बेहद खुश हैं। अमीनानजमा उस्मानी राधारानी के प्रति भक्ति भावना का ही प्रतिफल है कि बरसाना में हर कोई राधे-राधे ही कहते हैं। यहां पर मुस्लिम भाई भी खुद को राधारानी का भक्त मान राधे-राधे कहते हैं। चैतन्य कुटी के संत फूलडोल बिहारी दास ने कहा कि अगर हिंदुओं के अलावा किसी दूसरे धर्म के लोग होली पर्व की खुशी में शामिल होना चाहते हैं, तो यह अच्छी बात है। उनका स्वागत किया जाना चाहिए।

विरागी बाबा आश्रम के संत हरिबोल बाबा ने कहा कि होली भाईचारे का पर्व है। इस त्योहार को सभी धर्मो के लोगों को मिल-जुलकर मनाना चाहिए। अगर अन्य धर्म के लोग सहभागिता करते हैं, तो इसमें बुरा क्या है।


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