Move to Jagran APP

Lohri 2022: जानिए, कब मनाया जाएगा लोहड़ी का पर्व और क्या है इसकी परंपरा

Lohri 2022 लोहड़ी का त्योहार जहां एक ओर दुल्ला भट्टी की लोक कथा से जुड़ा हुआ है तो वहीं इसका संबंध माता सती की पौरणिक कथा से भी है। आइए जानते हैं लोहड़ी पर्व की परंपरा और उसके महत्व के बारे में....

By Jeetesh KumarEdited By: Published: Fri, 07 Jan 2022 04:27 PM (IST)Updated: Sun, 09 Jan 2022 09:59 AM (IST)
Lohri 2022: जानिए, कब मनाया जाएगा लोहड़ी का पर्व और क्या है इसकी परंपरा
Lohri 2022: जानिए, कब मनाया जाएगा लोहड़ी का पर्व और क्या है इसकी परंपरा

Lohri 2022: लोहड़ी, उत्तर भारत विशेषकर पंजाब और हरियाणा में मनाया जाने वाला विशेष पर्व है। लोहड़ी का पर्व पौष माह की आखिरी रात को मनाया जाता है। इस साल लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी को मनाया जाएगा।इसके अगले दिन माघ माह की शुरूआत पर माघी का त्योहार मानाया जाता है। इस दिन पूरे उत्तर भारत में मकर संक्रांति या उत्तरायण का पर्व मनाया जाता है। लोहड़ी का त्योहार जहां एक ओर दुल्ला भट्टी की लोक कथा से जुड़ा हुआ है तो वहीं इसका संबंध माता सती की पौरणिक कथा से भी है। आइए जानते हैं लोहड़ी पर्व की परंपरा और उसके महत्व के बारे में....

loksabha election banner

जानिए कैसे मनाते हैं लोहड़ी

लोहड़ी का पर्व पौष माह की आखिरी रात को धूम-धाम से मनाया जाता है। लोहड़ी का पर्व शीत ऋतु की समाप्ति और बसंत के आगमन के उपलक्ष में मनाया जाता है। इस दिन लोग खेत-खलिहानों में एकठ्ठा हो कर एक साथ लोहड़ी का पर्व मनाते हैं। इस दिन शाम के समय लोंग आग जला कर उसके चारों ओर नाच गा कर लोहड़ी का पर्व मनाते हैं। इस आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दाने डाले जाने की परंपरा है। इसके साथ ही घरों में तरह-तरह के पकवान भी बनाए जाते हैं। लोग एक दूसरे के साथ मिलकर नाचते गाते हैं, खुशियां मनाते हैं।

क्या है लोहड़ी की परंपरा

पंजाब में लोहड़ी को तिलोड़ी भी कहा जाता है। ये शब्द तिल और रोड़ी से मिलकर बना है। रोड़ी, गुड़ और रोटी से मिलकर बना पकवान है। लोहड़ी के दिन तिल और गुड़ खाने और आपस में बांटने की परंपरा है। ये त्योहार दुल्ला भट्टी और माता सती की कहानी से जुड़ा है। मान्यता है इस दिन ही प्रजापति दक्ष के यज्ञ में माता सती ने आत्मदाह किया था। इसके साथ ही इस दिन लोक नायक दुल्ला भट्टी, जिन्होंने मुगलों के आतंक से सिख युवतियों की लाज बचाई थी। उनकी याद में आज भी लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है।लोग मिल जुल कर लोक गीत गाते हैं और ढोलताशे बजाए जाते हैं।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.