ईद- ए- मिलाद पर जानें हजरत मुहम्मद साहब से जुड़ी बातें
कुरान के अनुसार ईद ए मिलाद को मौलिद मावलिद के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ होता है पैगंबर के जन्म का दिन। इस दिन जाने पैगंबर के बारे में कुछ बातें।
आदर्श थे हजरत मुहम्मद साहब
1978 में अमरीका में एक पुस्तक 'द हंड्रेड' प्रकाशित हुई, जिसके लेखक थे डॉ.माइकल हार्ट। उस पुस्तक में हार्ट ने मानव इतिहास पर सबसे अधिक प्रभाव डालने वाले व्यक्तियों की एक सूची तैयार की, जिसमें डॉ. हार्ट ने पहले मुकाम पर हजरत मुहम्मद साहब को रखा। हार्ट के अनुसार, 'हजरत मुहम्मद साहब इतिहास के एकमात्र व्यक्ति थे, जो धार्मिक और सांसारिक दोनों स्तरों पर सबसे अधिक सफल थे।' इसी तरह ब्रिटिश इतिहासकार थॉमस कार्लाइल ने हजरत मुहम्मद साहब को हीरो बताया। कुरान के अनुसार, वह समस्त मानव जाति के लिए एक आदर्श व्यक्ति थे।
कट्टरपन से दूर रहने की सलाह
हजरत मुहम्मद साहब के जीवन के बारे में जानने से उनके अनेक सिद्धांत सामने आते हैं, जो दर्शाते हैं कि कैसे इतने कम समय में वह इतनी अधिक सफलता हासिल कर पाए। आज विश्व में जहां-तहां मुस्लिम राज्यों पर नजर डालें, तो एक उथल-पुथल मची दिखती है। इस्लाम कट्टरपन नहीं सिखाता, लेकिन विश्व में कट्टरपन से जुड़ी बड़ी घटनाएं सामने आ रही हैं। हजरत मुहम्मद साहब ने हमेशा धार्मिक कट्टरपन से न सिर्फ अपने को दूर रखा, बल्कि साथियों को भी इससे दूर रहने की सलाह दी। इसका एक बड़ा उद्धरण हुद्दैबियाह की संधि के समय देखने को मिलता है।
सामने आते हैं जीवन के सिद्धांत
हुद्दैबियाह संधि हजरत मुहम्मद साहब और उनके विरोधियों के बीच हुई थी। वह एक ऐसी संधि थी, जो पूरी तरह एकपक्षीय थी, लेकिन इसके बावजूद मुहम्मद साहब संधि करने को तैयार हो गए। मक्का के लोग उनके इतने कड़े विरोधी थे कि संधि लेखन में जहां हजरत मुहम्मद साहब के हस्ताक्षर होने थे, वहां उनके नाम के नीचे ये शब्द लिखे गए थे- 'यह मुहम्मद की तरफ से है, जो ईश्वर के पैगंबर हैं।' मक्का के प्रतिनिधियों ने इस पर भी आपत्ति उठाई। उस समय हजरत मुहम्मद साहब अपने कई साथियों के साथ थे। वे चाहते तो बल पूर्वक अपनी कोई भी बात मनवा लेते, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। तुरंत अपने नाम के नीचे लिखे उन शब्दों को काट दिया और उस जगह केवल 'अब्दुल्ला के बेटे मुहम्मद' अपने साथी से लिखने को कहा। उन्होंने जीवन में सफलता हासिल करने के लिए हमेशा सकारात्मक तरीकों का पालन किया।
कभी नहीं छोड़ा सकारत्मक मार्ग
हजरत मुहम्मद और उनके साथियों ने मक्का के लोगों के घोर विरोध के बावजूद कभी सकारात्मकता का रास्ता नहीं छोड़ा। उन लोगों के सामने हर तरह की बाधाएं खड़ी की गई। अभद्र टिप्पणियां की गई। पत्थर भी मारे गए। इतनी कठिनाइयों के बावजूद उस समय कुरान ने उन पर बुराई को अच्छाई से हटाने का हुक्म दिया और कहा कि इसके बाद 'तुम देखोगे कि तुम्हारा प्रत्यक्ष दुश्मन तुम्हारा सबसे प्रिय दोस्त बन गया।' आज के दिन हमें पुन: आत्मविश्लेषण की जरूरत है। किस तरह हम हजरत मुहम्मद साहब के इन सकारात्मक सिद्धांतों को अपने जीवन में ढाल कर स्वयं को नकारात्मकता का शिकार होने से बचा सकते हैं।
इस लेख के लेखक रामिश सिद्दीकी इस्लामिक विषयों के जानकार है।