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जानें क्या है शिव के शीश पर विराजित चंद्रमा की कहानी

शिव के शीश पर विराजित है चंद्रमा पर क्यों ये कहानी बतार्इ गर्इ है शिव पुराण में। इसके अनुसार चंद्रमा ने शिव को शीतल कर उन्हें कष्ट से मुक्ति दिलार्इ थी।

By Molly SethEdited By: Published: Sat, 16 Feb 2019 03:31 PM (IST)Updated: Mon, 18 Feb 2019 09:45 AM (IST)
जानें क्या है शिव के शीश पर विराजित चंद्रमा की कहानी

जब चंद्रमा बने थे शिव के रक्षक

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भगवान शिव शक्ति पुंज के रूप में युगों से संसार में विद्यमान है। वे निराकार हैं, आैर जन्म और मृत्यु के बंधनों से मुक्त हैं। शिव के रौद्र रूप आैर सौम्य दोनों रूपों की कर्इ कथायें प्राचीन ग्रंथों में वर्णित हैं। ये सब जानते हैं कि यदि क्रोध में शंकर सृष्टि के संहारक बन जाते हैं तो शांत स्वरूप में संसार की रक्षा के लिए स्वयं कष्ट सहने के लिए तैयार रहते हैं। ऐसी ही एक कहानी है जब शिव संकटमोचक बन कर स्वयं कष्ट आ गए आैर चंद्रमा ने स्वयं को उनकी जटाओं में विराजित कर उनका कष्ट दूर किया था। 

चंद्रमा ने शिव पीड़ा दूर

शिवपुराण में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार जब समुद्र मंथन किया गया आैर उसमें से विष निकला तो पूरी सृष्टि की रक्षा के लिए स्वयं भगवान शिव ने उसको ग्रहण कर पान कर लिया था। इस विष को पीने के बाद शिव जी का शरीर उसके प्रभाव से अत्यधिक गर्म होने लगा। इसे देखकर चंद्रमा ने विन्रम स्वर में प्रार्थना की, कि भोले उन्हें माथे पर धारण करलें ताकि विष का प्रभाव कम हो आैर उन्हें शीतलता का अनुभव हो। पहले तो शिव ने चंद्रमा के इस आग्रह को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि उन्हें लगा कि श्वेत और शीतल होने के कारण चंद्रमा इस विष की असहनीय तीव्रता को सहन नहीं कर पायेंगे। जब चंद्रमा सहित अन्य देवतागणों ने उनसे बार बार निवेदन किया तो शिव ने उसे स्वीकार कर लिया आैर चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया। तभी से चंद्रमा, भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान होकर पूरी सृष्टि को अपनी शीतलता प्रदान कर रहे हैं। माना जाता है कि उसी विष की तीव्रता के कारण चांद के श्वेत रंग में नीलिमा घुल गर्इ है, जिस कारण से पूर्णिमा की रात को चांद का रंग थोड़ा-थोड़ा नीला भी प्रतीत होता है। 


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