पितृ पक्ष 2018: क्या है बच्चों के श्राद्घ से जुड़ी खास बातें
पितृ पक्ष 2018 प्रारंभ हो चुके हैं। अगर आपके मन में बच्चों के मृत्योपरांत कर्म कांड को लेकर कोर्इ भ्रम है तो पंडित दीपक पांडे से जाने कैसे होता है बच्चों का श्राद्घ।
अक्सर होता है भ्रम
बच्चों के श्राद्घ को लेकर अक्सर ये ऊहापोह रहती है कि उनका श्राद्घ होता है या नहीं, यदि होता है तो किस उम्र तक के बच्चे श्राद्घ के दायरे में आते हैं आैर जिनका श्राद्घ नहीं होता उनकी आैर कौन सी क्रियायें की जाती हैं। इस बारे में सबसे पहले तो ये जान लें की बच्चों के श्राद्घ की प्रक्रिया में उम्र की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। मृतक बच्चे की उम्र के अनुसार ही ये तय होता है कि उसका श्राद्घ होगा या नहीं। जिनका श्राद्घ नहीं होता है उनमें से कुछ के साथ कुछ विशेष विधान करें जाते हैं।
इनका नहीं होता श्राद्घ
जिन बच्चों की आयु दो वर्ष या उससे कम होती है उनका श्रा़द्घ या वार्षिक तिथि का विधान नहीं होता है। दस वर्ष से कम आयु की कन्याआें के साथ भी यही नियम लागू होता है। उनका भी श्राद्घ आैर वार्षिक तिथि करने की मनाही है। यदि बालक की आयु छह वर्ष से अधिक आैर कन्या की आयु दस वर्ष के करीब है तो इनका श्राद्घ तो नहीं होता परंतु उनकी मलिन षोडशी क्रिया की जाती है। मलिन षोडशी मृत्यु के दस के भीतर मृत्युपरांत की जाने वाली क्रिया को कहा जाता है।
इस आयु के बाद होता है श्राद्घ
इसके पश्चात जिन बालकों आयु छह वर्ष से ऊपर की होती है उनकी मृत्युपरांत श्राद्घ की सम्पूर्ण क्रियायें विधिविधान के साथ की जाती हैं। कन्याआें की दस साल से ज्यादा की उम्र में श्राद्घ प्रक्रिया होती है। इनमें मलिन षोडशी, एकादशाह आैर सपिंडन जैसी क्रियायें शामिल हैं। यदि तिथि याद ना रहे तो मृत बच्चों का श्राद्ध करने के लिए भी त्रयोदशी के दिन को शुभ माना जाता है
विवाहित कन्याआें का श्राद्घ
विशेष रूप से जिन कन्याआें का विवाह हो चुका हो उनका श्राद्घ करने का अधिकार उसके सुसराल वालोें को होता है मायके में माता पिता को नहीं। वैसे किशोर हो चुके अविवाहितों का श्राद्घ पंचमी के दिन भी किया जा सकता है। इसी लिए इसे कुंवारा पचमी भी कहते हैं।