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    Kabirdas Jayanti 2024: जीवन जीने की राह दिखाते हैं मगहर के संत कबीर के ये अनमोल वचन

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Thu, 20 Jun 2024 04:58 PM (IST)

    Kabirdas Jayanti 2024 Date कबीर दास के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। व्यक्ति कबीर दास के विचारों को आत्मसात कर अपने जीवन में सफल हो सकता है। कबीर दास ने अपने जीवनकाल में कई रचनाएं की हैं। इनमें कबीर अमृतवाणी प्रमुख और विश्व प्रसिद्ध है। इस रचना के माध्यम से कबीर दास ने लोगों को जीवन का मुख्य उद्देश्य बताया है।

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    Kabirdas Jayanti 2024: संत कबीरदास की जीवनी

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Kabir Das ji Life Lessons: हर वर्ष ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि पर कबीर जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष 22 जून को कबीर जयंती है। संत कबीरदास भक्ति आंदोलन के समकालीन थे। कबीर दास की जन्म तिथि के बारे में सत्य जानकारी उपलब्ध नहीं है। इतिहासकारों की मानें तो मगहर के महान संत कबीर दास का जन्म सन 1398 को ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि पर हुआ था। वाराणसी के पास लहरतारा तालाब में नीरू और नीमा नामक दंपति को कबीरदास बाल्यावस्था में कमल पुष्प के ऊपर मिले थे। अत: लहरतारा को कबीर जी की जन्मस्थली माना जाता है। वहीं, जीवन के अंतिम समय में कबीर दास मगहर में रहे थे। इसके लिए उन्हें मगहर के महान संत की उपाधि दी गई।

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    कबीर दास बाल्यावस्था से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। भक्ति आंदोलन का प्रभाव कबीरदास पर व्यापक रूप से पड़ा। गुरु रामानंद जी से कबीरदास ने दीक्षा हासिल की। कालांतर में कबीर दास निर्गुण शाखा के महान संत थे। उन्होंने बाह्य आडंबर पर प्रतिघात किया। कबीर दास ने भक्ति और कविता के माध्यम से प्रभु की साधना की। अपने जीवनकाल में कबीर दास ने कई रचनाएं की हैं। इन रचनाओं में जीवन जीने का उद्देश्य निहित है। अगर आप भी अपने जीवन में सफल होना चाहते हैं, तो कबीर जी के इन अनमोल वचनों का जरूर अनुसरण करें।

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    अनमोल विचार

    1. बड़ा भया तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर,

    पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।

    कबीर दास इस दोहे के माध्यम से कहना चाहते हैं कि ताड़ और खजूर जैसे बड़े से क्या ही फायदा है। ताड़ और खजूर के पेड़ से पंथी को छाया बिलकुल नहीं लगता है। वहीं, फल भी दूर रहता है। व्यक्ति को जीवन में ताड़ और खजूर जैसा नहीं बनना चाहिए, बल्कि गुणवान और कर्मवान बनना चाहिए।

    2. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,

    ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

    कबीर दास इस दोहे के माध्यम से कहते हैं कि लोग ज्ञान हासिल करने के लिए नाना प्रकार की पुस्तकें पढ़ते हैं। इसके बावजूद पंडित नहीं बन पाता है। वहीं, प्रेम शब्द को समझ लेने से व्यक्ति पंडित बन जाता है। इसके लिए जीवन में प्रेम करना सीखें। सभी के प्रति सौम्य व्यवहार रखें। भले ही वह आपके लिए बुरा सोचता है। सबका मालिक एक है।

    3. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,

    माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

    इस दोहे के माध्यम से कबीर दास कहते हैं कि व्यक्ति को धैर्यवान होना चाहिए। जल्दबाजी से न केवल काम बिगड़ता है, बल्कि ईश्वर का भी आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता है। माली बाग में लगे फल देने वाले पेड़ को रोजाना सींचता है। हालांकि, उस पेड़ में फल ऋतु आने पर ही लगता है। इसके लिए सही समय का इंतजार करना चाहिए।

    4. माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,

    कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

    इस दोहे के माध्यम से कबीर दास कहना चाहते हैं कि व्यक्ति हाथ में माला लेकर जपता रहता है। हालांकि, व्यक्ति के मनोभाव नहीं बदलता है। उसके मन में हलचल मची रहती है। ठीक उसी प्रकार लोग काम करते समय निष्ठावान नहीं हो पाता है। इसके चलते लोग कुछ समय के बाद अपने फैसले बदल लेते हैं। अगर मन में द्वंद्व चलता रहता है, तो कार्य को बदल लें।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।