उल्लास, उमंग, तरंग की त्रिवेणी में सराबोर हुआ त्रिभुवन
कबहुं नैन मिलाए, कबहुं मटकाए, कबहुं की ठिठोली। घेर लई सब गली रंगीली, छाय रही है छटा छबीली ।। जय राधे-राधे। राधे जूं की नगरी में आज मजबूरी में कन्हैय्या भी राधे-राधे बोल रहे थे। अबीर-गुलाल ऐसा उड़ा कि बादल भी लाल-लाल गाल कराए से लग रहे थे। मस्ती का
बरसाना (मथुरा)। कबहुं नैन मिलाए, कबहुं मटकाए, कबहुं की ठिठोली। घेर लई सब गली रंगीली, छाय रही है छटा छबीली ।। जय राधे-राधे। राधे जूं की नगरी में आज मजबूरी में कन्हैय्या भी राधे-राधे बोल रहे थे। अबीर-गुलाल ऐसा उड़ा कि बादल भी लाल-लाल गाल कराए से लग रहे थे। मस्ती का माखन गलियों में ऐसा बिखरा कि मन बार फिसले। टोल के टोल बना के गोल लली के गालन पर अपने हाथन से रंग लगाइबे को बढ़े।
राधा भी कम नहीं थीं। सखियों संग झुंडन में निकलकर कान्हा के छोरन के टोलन ते झपट-लपट के दो-दो हाथ करती रहीं। बेला-चमेली चारों ओर अपनी सुगंध बिखेर रहे हैं तो केवड़ा और इतर गुलाबा भी महक कर इतरा रहा है। भक्त तो धन्य ऐसे हैं कि वह मान रहे हैं कि सारा धन यहीं मिल गया।
होली पर बरसाना में शुक्रवार को तरह-तरह के रंग बरसे! रंग बरसा, अबीर-गुलाल उड़ा! होली की मस्ती में नंदगांव के हुरियारे बरसाना की गलिन में छैल-छबीली गोपियों से बरजोरी करने लगे। रंगीली गली में सजी-संवरी खड़ी हुरियारिनों से नैन मिलाए रहे, नैन मटकाए। हंसी-ठिठोली की। मर्यादाएं पार हुईं, तो हुरियारिनों ने हर शरारत पर सबक सिखाया। गलिन-गलिन में घेर-घेरकर हुरियारों पर ल_ बरसाए। ढाल से ल_ से बचाव करते हुरियारे अपनी गलती के लिए कभी कान पकड़ माफी मांगते, तो कभी उठक-बैठक लगाते, मगर हुरियारिनें उन्हें छोडऩे के मूड में नहीं थीं। ल_ बरसाते हुए उन्हें गली में दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। प्रेमपगी लाठियों की बरसात में भीजने के लिए देश और दुनिया से आए लोगों का सैलाब उमड़ा पड़ा। चारों दिशाओं में राधे-राधे की गूंज होती रही।
सुबह नंदगांव के हुरियारे ढाल थामे पैदल ही बरसाना की ओर चल दिए थे। जयपुरी फेंटा और हाथों में ढाल, पिचकारी लेकर हुरियारों के टोल नंदबाबा मंदिर पहुंच गए। नंदगांव से बरसाना की करीब आठ किमी की दूरी मस्ती में कब निकल गई, किसी को अहसास भी न हुआ। हुरियारे बरसाना के पीरी पोखर पहुंचे, यहां बरसाना के गोस्वामी समाज ने उनका स्वागत किया।
शाम को श्री राधा के धाम में सूर्य देव छिपने की तैयारी में थे, लेकिन रंग-बिरंगे वेश में आए नंदगांव के ग्वालों (हुरियारों) के चेहरों पर मुस्कान तैर रही थी। एक ओर ये हुरियारे, दूसरी तरफ लहंगा-ओढऩी से सजी श्री राधारानी की सखी गोपियां। ग्वालों के हाथ में ढाल, तो गोपियों के हाथों में थीं लंबी सजीली लाठियां। हुरियारों को छेड़ते देख लंबा घूंघट काढ़े गोपियां कभी सकुचातीं, तो कभी मुस्कुरातीं, कभी नैनन के बाण चलातीं। हुरियारे भी मस्ती के मूड में थे। छैल-छबीली गोपियों को देख नैन मटकाने लगे। हास-परिहास करने लगे। एक हुरियारे ने शरारती अंदाज में हुरियारिनों को होली खेलने का इशारा किया। गोपियों को मानो इसी समय का इंतजार था। आवाज आई 'आ लाला तो कूं खिलाऊं मैं होली।Ó इसके साथ ही गोपियों ने ग्वालों पर प्रेम से सराबोर लाठियों की बरसात शुरू कर दी। गोपियों ने कान्हा के सखाओं को घुटनों के बल बैठने को विवश कर दिया। फिर दनादन लाठियां बरसने लगीं। कुछ हुरियारे तो लाठियों का मजा चखने के लिए उछलकर हुरियारिनों के पास पहुंच जाते। कुछ '..मत मारे दृगन की चोट रसिया होरी में, मेरे लग जाएगी।Ó गाकर मनुहार भी करते रहे।