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Janmashtami 2022: आखिर कैसे भगवान श्रीकृष्ण का नाम पड़ा लड्डू गोपाल, जानें इसके पीछे की कहानी

Janmashtami 2022 भगवान श्रीकृष्ण को कान्हा मुरलीधर श्याम मोहन बंसीधर द्वारकाधीश जैसे कई नामों से पुकारा जाता है। इनमें से एक सबसे खास है लड्डू गोपाल। तो भगवान कृष्ण का नाम लड्डू गोपाल क्यों पड़ा आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Thu, 18 Aug 2022 03:03 PM (IST)Updated: Thu, 18 Aug 2022 03:03 PM (IST)
Janmashtami 2022: आखिर कैसे भगवान श्रीकृष्ण का नाम पड़ा लड्डू गोपाल, जानें इसके पीछे की कहानी
Janmashtami 2022: आखिर कैसे भगवान श्रीकृष्ण का नाम पड़ा लड्डू गोपाल

नई दिल्ली, Janmashtami 2022: जब-जब धरती पर धर्म का पतन होता है और अधर्म बढ़ता है तब-तब भगवान विष्णु मनुष्य रूप में पृथ्वी पर अवतार लेते हैं। इसी तरह द्वापर युग में भाद्रपद की अष्टमी तिथि, दिन बुधवार, रोहिणी नक्षत्र में भगवान विष्णु ने लोगों को पापी कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए रानी देवकी के गर्भ से कृष्ण रूप में अवतार लिया। तभी से कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाने लगा। 

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श्रीकृष्ण को बाल गोपाल, कान्हा, कन्हैया, मुरलीधर, नंदलाला, गोपाला और लड्डू गोपाल जैसे कई नामों से पुकारा जाता है। तो इनका लड्डू गोपाल नाम कैसे पड़ा? आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से..

कैसे पड़ा भगवान श्रीकृष्ण का नाम लड्डू गोपाल?

कहते हैं कि ब्रज भूमि में भगवान श्रीकृष्ण के एक परम भक्त थे कुम्भनदास थे। जिनका एक पुत्र था रघुनंदन। कुंभनदास श्री कृष्ण की भक्ति में लीन रहता थे और उन्हें छोड़कर कहीं नहीं जाते थे। एक बार उन्हें वृंदावन से भागवत करने का न्यौता आया। पहले तो कुंभनदास ने उन्हें मना कर दिया फिर लोगों के बहुत ज्यादा जोर देने पर वे मान गए। उन्होंने सोचा कि भगवान की सेवा की तैयारी करके जाएंगे और कथा करके वापस लौट आएंगे। कुंभनदास ने भोग की सारी तैयारी करके अपने बेटे रघुनंदन को समझा दिया कि ठाकुर जी को भोग लगा देना और कथा के लिए चले गए।

रघुनंदन ने भोजन की थाली ठाकुर जी के आगे रखी और उनसे भोग लगाने का आग्रह किया। उसके बाल मन में ये छवि थी कि ठाकुर जी अपने हाथों से भोजन करेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बहुत देर इंतजार करने के बाद जब भोजन की थाली ऐसे ही रखी रही, तो रघुनंदन जोर से रोने लगा और पुकारा कि ठाकुर जी आओ और भोग लगाओ। रघुनंदन की इस पुकार के बाद ठाकुर जी ने बालक का रुप धारण किया और भोजन करने बैठ गए। जब कुंभनदास ने घर आकर रघुनंदन से प्रसाद मांगा तो उसने कह दिया कि ठाकुर जी ने सारा भोजन खा लिया। कुंभनदास को लगा बच्चे को भूख लगी होगी वही सारा भोजन खा गया होगा। लेकिन अब ये रोजाना होने लगा। तब कुंभनदास को शक हुआ, तो उन्होंने एक दिन लड्डू बनाकर थाली में रखे और छुपकर देखने लगे कि रघुनंदन क्या करता है।

लड्डू की थाली रघुनंदन ने ठाकुर जी के आगे रखी तो उन्होंने बालक का रुप धारण किया और लड्डू खाने लगे। कुंभनदास ये सब छुपकर देख रहा था. जैसे कि ठाकुर जी बालक के रुप में प्रकट हुए कुंभनदास भागता हुआ आया और प्रभु के चरणों में गिरकर विनती करने लगे। उस समय लड्डू गोपल के एक हाथ में लड्डू था और दूसरे हाथ का लड्डू मुंह में जाने ही वाला था, लेकिन इतने में वे जड़ हो गए। उसके बाद से ही उनके इस रुप की पूजा की जाती है और उन्हें लड्डू गोपाल 

Pic credit- freepik


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