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Facts Of Sengol: प्राचीन भारत की विरासत है सेंगोल, जानें- इससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

Facts Of Sengol सनातन शास्त्रों में सेंगोल का उल्लेख है। वर्तमान समय में बोलचाल के लिए सेंगोल को राजदंड भी कहा जाता है। यह छड़ी जैसा होता है जो नीचे से पतला होता है तो ऊपर में मोटा होता है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarPublished: Sun, 28 May 2023 02:59 PM (IST)Updated: Sun, 28 May 2023 02:59 PM (IST)
Facts Of Sengol: प्राचीन भारत की विरासत है सेंगोल, जानें- इससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
Facts Of Sengol: प्राचीन भारत की विरासत है सेंगोल, जानें- इससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Facts Of Sengol: भारतवर्ष के लिए आज का दिन बेहद खास है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आज नए संसद भवन का उद्घाटन किया। इस मौके पर सनातन धर्म के रीति-रिवाजों का पालन कर संसद भवन में सेंगोल स्थापित किया गया। साथ ही पूजा-उपासना की गई। इस विशेष अवसर पर सभी धर्मों के गुरुओं ने प्रार्थनाएं भी की। पिछले कुछ दिनों में देशभर में सेंगोल को लेकर खूब चर्चा है। आइए, प्राचीन भारत की विरासत सेंगोल के बारे में महत्वपूर्ण बातें जानते हैं-

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क्या है सेंगोल ? (What Is Sengol)

सनातन शास्त्रों में सेंगोल का उल्लेख है। वर्तमान समय में बोलचाल के लिए सेंगोल को राजदंड भी कहा जाता है। यह छड़ी जैसा होता है, जो नीचे से पतला होता है, तो ऊपर में मोटा होता है। सेंगोल के शीर्ष पर भगवान शिव की सवारी नंदी की प्रतिमा है। इसकी लंबाई 5 फीट होती है। इस पर भारतीय तिरंगा भी बना रहता है। सेंगोल सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक है। जानकारों की मानें तो ब्रिटिश सरकार ने सत्ता हस्तांतरण के समय जवाहरलाल नेहरू को सेंगोल सौंपा था।

धार्मिक महत्व

इतिहासकारों की मानें तो सेंगोल का चोल राजवंश से गहरा नाता है। चोल वंश के राजा देवों के देव महादेव के भक्त थे। उनकी पूजा-उपासना किया करते थे। भगवान शिव की सवारी नंदी है। अतः सेंगोल के शीर्ष पर नंदी की प्रतिमा लगाई गई थी। चोल साम्राज्य में जब नए राजा का राज्याभिषेक होता था, तो सत्ता हस्तांतरण के समय राजदंड यानी सेंगोल दिया जाता था। चोल काल से सत्ता हस्तांतरण पर सेंगोल देने की प्रथा है। इसे सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है। सनातन धार्मिक मान्यता है कि राजा राजदंड यानी सेंगोल का उसी समय प्रयोग कर सकते हैं। जब वे सिंहासन पर बैठते हैं। इसके अलावा, अन्य जगहों पर राजदंड का प्रयोग करना धर्म विरुद्ध है। स्वर्ग के नरेश इंद्रदेव और दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य के हाथों में सेंगोल देखा जा सकता है। सेंगोल राजधर्म का प्रतीक है। स्वर्ग के नरेश सिंहासन पर बैठने के बाद हाथ में राजदंड लेकर राज करते हैं। महाभारत के शांतिपर्व में सेंगोल का उल्लेख है।

डिस्क्लेमर- ''इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।


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