Move to Jagran APP

यादों में गुम हो गई होल्यारों की होली

होली मनाने के लिए शहर और शहरवासी पूरी तरह तैयार हैं, लेकिन किसी समय होली के मौके पर दिखने वाली होल्यारों की टोली अब शहर में कहीं नहीं दिखती। होली के नाम पर अब सिर्फ रंगे पुते चेहरे लिए तेज रफ्तार बाइकों पर फर्राटा भरते युवा ही नजर आते हैं। हरिद्व

By Edited By: Published: Thu, 13 Mar 2014 04:39 PM (IST)Updated: Thu, 13 Mar 2014 05:03 PM (IST)
यादों में गुम हो गई होल्यारों की होली

हरिद्वार। होली मनाने के लिए शहर और शहरवासी पूरी तरह तैयार हैं, लेकिन किसी समय होली के मौके पर दिखने वाली होल्यारों की टोली अब शहर में कहीं नहीं दिखती। होली के नाम पर अब सिर्फ रंगे पुते चेहरे लिए तेज रफ्तार बाइकों पर फर्राटा भरते युवा ही नजर आते हैं।

loksabha election banner

हरिद्वार के इतिहास की बात करें तो पहले होल्यारों की टोली होली के दिन पूरे शहर में घूमकर लोगों को होली की शुभकामनाएं देती थी। होली के लिए लोगों ने मिठाई बनाने से लेकर रंग तक खरीद लिए हैं। धर्मनगरी में होल्यारों की जबरदस्त होली देख चुके लोगों की यादों में आज भी वही बरसों पुरानी यादें बसी हैं। कनखल स्थित बैठकी होली बनाने वाले डॉ. प्रदीप कुमार जोशी कहते हैं कि करीब 15 साल पहले तक होल्यारे कनखल से होली मनाने की शुरुआत करते थे और पूरा शहर घूम कर बच्चों, बड़ों और बुजुर्गो को होली की शुभकामनाएं देते थे। उस वक्त होल्यारों की टोली 'बरस दिवाली बरसे फाग, हो हो हो लकरे. इनर पूत परिवार जीरौं हौं लाख बारिश' गीत गाते हुए चलते थे। आज की बात करें तो होली का स्वरूप पूरी तरह से बदल गया है। अब तो होली के नाम पर सिर्फ हुड़दंग मचाया जाता है।

पुराने होल्यारों में शामिल केसी पांडे कहते हैं कि अब तो वह सब सिर्फ यादों में ही बसा है। पहले होली को लोग प्यार और एक दूसरे से गिले शिकवे दूर करने का त्योहार समझते थे। अब तो होली के नाम पर हो हल्ला होता है। होली का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.