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'गुलाल कारपेट' पर बाबा के गौने की बरात

रंगभरी एकादशी पर बुधवार को गौरी शंकर के गौने के जश्न में काशी अंगराई। भक्तों ने भोले बाबा को गुलाल से लाल कर नेग के तौर पर होली खेलने की अनुमति ली। इसके साथ ही समूची काशी होली के पांच दिन पहले ही होलियाना मूड में आ गई। रजत पालकी सजाई और तारनहार का रच रच दूल्हा रूप श्रृंगार किया। गौरा को नख शिख स

By Edited By: Published: Thu, 13 Mar 2014 01:25 PM (IST)Updated: Thu, 13 Mar 2014 01:27 PM (IST)
'गुलाल कारपेट' पर बाबा के गौने की बरात

वाराणसी। रंगभरी एकादशी पर बुधवार को गौरी शंकर के गौने के जश्न में काशी अंगराई। भक्तों ने भोले बाबा को गुलाल से लाल कर नेग के तौर पर होली खेलने की अनुमति ली। इसके साथ ही समूची काशी होली के पांच दिन पहले ही होलियाना मूड में आ गई।

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रजत पालकी सजाई और तारनहार का रच रच दूल्हा रूप श्रृंगार किया। गौरा को नख शिख सजाया, गोद में विघ्नविनाशक विराजे व श्रद्धालुओं ने जमकर अबीर गुलाल उड़ाए।

गुलाल कारपेट सी हुई राह पर बाबा की बरात का जश्न उतर आया। शहनाई की धुन, डमरुओं की थाप और शंखनाद के बीच काशी विश्वनाथ मंदिर में भक्तों का जोश बोल बम का उद्घोष बन गूंजा। इससे पहले महंत आवास में दोपहर से ही सुर साज के बीच शिव दरबार सजा। बाबा ने भक्तों को सपरिवार दर्शन दिया। महंत कुलपति तिवारी ने आरती उतारी और दुल्हन पार्वती को ससुराल के लिए विदा किया। दूल्हा शंकर अपनी दुल्हन पार्वती को रजत पालकी में लेकर अपने धाम को चले। इसके साथ ही दर्जन भर से अधिक डमरुओं की गड़गड़ाहट से मंदिर परिसर गूंज उठा। हवा में कई क्विंटल गुलाल उड़ गए। इससे फिजां के साथ ही पूरी जमीन लाल हो गई।

बम बम करती भीड़ का रेला आस्था के समंदर को अंगीकार कर मानों उसके ही रंग में रंगकर चलने की बजाय बह चला। पालकी को कंधे से लगाने और चरण रज पाने की होड़ लगी रही। विश्वनाथ मंदिर के मुख्य परिसर में पालकी प्रवेश के साथ ही 'हर हर महादेव' व 'बोल बम' का उद्घोष गूंज उठा। गर्भगृह में शिव परिवार को विराजमान कराने के लिए पालकी रखने तक को मशक्कत करनी पड़ी। मानो दुल्हन भगवती पार्वती के साथ गृहप्रवेश से पहले भक्तों की टोली 'नेग' लेने पर उतारू हो। नेग बाबा की कृपा का, आशीष का, जय का, विजय का।

शिव परिवार के रजत विग्रहों को गर्भगृह में स्थापित कर आरती उतारी गई। इसके साथ ही श्रद्धालुओं में झांकी दर्शन की होड़ लग गई। रात 11 बजे शयन आरती के बाद शिव परिवार के चल विग्रहों को वापस महंत आवास ले जाया जाता है। दिन में कलाकारों ने जहां गीत भजनों से शिवांजलि दी तो शाम को शिवार्चन किया। इसी के साथ काशी में होली खेलने की विधिवत शुरुआत हो गई।


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