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Lathmar Holi 2019: जानें कैसी होती है मथुरा में बरसाने की लठमार होली

मथुरा के बरसाना गांव में होली की शुरूआत एक अलग अंदाज में होती है। इसका नाम है लठमार होली और ये ब्रज क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध त्योहार है।

By Molly SethEdited By: Published: Fri, 15 Mar 2019 09:51 AM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2019 01:41 PM (IST)
Lathmar Holi 2019: जानें कैसी होती है मथुरा में बरसाने की लठमार होली
Lathmar Holi 2019: जानें कैसी होती है मथुरा में बरसाने की लठमार होली

आगरा, जेएनएन। मथुरा के बरसाना गांव में होली की शुरूआत एक अलग अंदाज में होती है। इसका नाम है लठमार होली और ये ब्रज क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध त्योहार है। जो श्री कृष्ण और राधा के पवित्र प्रेम को सर्मपित एक अदभुत होली होती है। वैसे ब्रज में होली एक ख़ास मस्ती भरी होती है क्योंकि इसे कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़ कर मनाया जाता है। उस पर से लठमार होली का रंग तो बिलकुल हट कर होता है। 

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अनोखा अंदाज
इस अवसर पर नंदगांव के पुरूष और बरसाने की महिलाएं मुख्य रूप से भाग लेते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि कृष्ण नंदगांव के थे और राधा बरसाने की इसीलिए नंदगांव के युवकों की टोलियां कान्हा का और बरसाने की युवतियां राधा जी का प्रतिनिधित्व करती हैं। युवक जब रंगों की पिचकारियां लिए बरसाना आते हैं तो उनपर यहां की महिलायें उन पर खूब लाठियां बरसाती हैं। पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है और महिलाओं को रंगों से भिगोना भी होता है। विभिन्न मंदिरों में पूजा अर्चना के पश्चात नंदगांव के पुरुष होली खेलने बरसाना गांव में आते हैं। इन पुरूषों को होरियारे कहा जाता है। बरसाना की लट्ठमार होली के बाद अगले दिन बरसाना के हुरियार नंदगांव की हुरियारिनों से होली खेलने उनके यहां पहुंचते हैं। इन गांवों के लोगों का विश्वास है कि होली का लाठियों से किसी को चोट नहीं लगती है।

कब होती है लट्ठमार होली
मुख्य होली से पहले ही बरसाने की लट्ठमार होली फाल्गुन मास में शुक्ल पक्ष की नवमी को मना ली जाती है। इस दिन नंदगांव के ग्वाल बाल होली खेलने के लिए राधा रानी के गांंव बरसाने जाते हैं। इसके अगले दिन यानी फाल्गुन शुक्ला दशमी को बरसाने के यूवक नंदगांव जाते हैं और फिर से लट्ठमार होली होती है। रंग तो उड़ता ही है इस दौरान भांग और ठंडाई का भी ख़ूब दौर चलता है। कई कीर्तन मण्डलियां राधा और कृष्ण से जुड़े लोक गीत ‘होरी’ गा कर रंग जमाती हैं। कहा जाता है कि "सब जग होरी, जा ब्रज होरा" याने ब्रज की होली सबसे अनूठी होती है।

क्यों होती है ये अनोखी होली
वास्तव में लट्ठमार होली भगवान कृष्ण के काल में उनकी लीलाओं की पुनरावृत्ति जैसी है। माना जाता है कि कृष्ण अपने सखाओं के साथ इसी प्रकार कमर में फेंटा लगाए राधारानी और उनकी सखियों से होली खेलने पहुंच जाते थे जिस पर वे ग्वाल वालों पर डंडे बरसाया करती थीं। लाठी की मार से बचने के लिए ग्वाल बाल भी ढालों का प्रयोग किया करते थे जो धीरे-धीरे इस लट्ठमार होली की परंपरा बन गया। तब से इस परंपरा का निर्वहन उसी रूप में किया जाता है।


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