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Ganga Dussehra 2019: अयोध्या से जुड़ी है स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगा अवतरण की घटना, पढ़ें कथा

Ganga Dussehra 2019 इस वर्ष गंगा दशहरा 12 जून दिन बुधवार को मनाया जा रहा है। गंगा के स्वर्ग से पृथ्वी पर आने की घटना मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम की अयोध्या नगरी से जुड़ी है।

By kartikey.tiwariEdited By: Published: Wed, 12 Jun 2019 10:55 AM (IST)Updated: Wed, 12 Jun 2019 11:00 AM (IST)
Ganga Dussehra 2019: अयोध्या से जुड़ी है स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगा अवतरण की घटना, पढ़ें कथा

Ganga Dussehra 2019: ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को स्वर्ग में हबने वाली गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था, इस कारण से इस तिथि को गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष गंगा दशहरा 12 जून दिन बुधवार को मनाया जा रहा है। गंगा के स्वर्ग से पृथ्वी पर आने की घटना मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम की अयोध्या नगरी से जुड़ी है। गंगा दशहरा के अवसर ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र बता रहे हैं गंगा अवतरण की कथा —

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गंगा अवतरण की पौराणिक कथा

सूर्यवंशी श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ था। उनके पूर्वजों में एक चक्रवर्ती सम्राट थे महाराजा सगर। उनकी दो रानियों में से केशनी से एक पुत्र असमंजस था तो दूसरी रानी सुमति से 60 हजार पुत्र थे। असमंजस का पुत्र अंशुमान था। महाराजा सगर के सभी पुत्र दुष्ट थे, उनसे दुखी होकर राजा सगर ने असमंजस को राज्य से निकाल दिया। उनका पौत्र अंशुमान दयालु, धार्मिक, उदार और दूसरों का सम्मान करने वाला था। राजा सगर ने अंशुमान को ही अपना उत्तराधिकारी बना दिया।

ऐसे भस्म हो गए राजा सगर के 60 हजार पुत्र

इस बीच राजा सगर ने अपने राज्य में अश्वमेधयज्ञ का आयोजन किया, जिसके तहत उन्होंने अपने यज्ञ का घोड़ा छोड़ा था, जिसे देवताओं के राजा इंद्र ने चुराकर पाताल में कपिलमुनि के आश्रम में बांध दिया। इधर राजा सगर के 60 हजार पुत्र उस घोड़े की खोज कर रहे थे, लाख प्रयास के बाद भी उन्हें यज्ञ का घोड़ा नहीं मिला। पृथ्वी पर घोड़ा न मिलने की दशा में उन लोगों ने एक जगह से पृथ्वी को खोदना शुरू किया और पाताल लोक पहुंच गए।

घोड़े की खोज में वे सभी कपिल मुनि के आश्रम में पहुंच गए, जहां घोड़ा बंधा था। घोड़े को मुनि के आश्रम में बंधा देखकर राजा सगर के 60 हजार पुत्र गुस्से और घमंड में आकर कपिल मुनि पर प्रहार के लिए दौड़ पड़े। तभी कपिल मुनि ने अपनी आंखें खोलीं और उनके तेज से राजा सगर के सभी 60 हजार पुत्र वहीं जलकर भस्म हो गए।

अंशुमान को इस घटना की जानकारी गरुड से हुई तो वे मुनि के आश्रम गए और उनको सहृदयता से प्रभावित किया। तब मुनि ने अंशुमान को घोड़ा ले जाने की अनुमति दी और 60 हजार भाइयों के मोक्ष के लिए गंगा जल से उनकी राख को स्पर्श कराने का सुझाव दिया।

गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए भगीरथ की तपस्या

पहले राजा सगर, फिर अंशुमान, राजा अंशुमान के पुत्र दिलीप इन सभी को गंगा को प्रसन्न करने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए। तब राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ ने अपनी तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर गंगा को पृथ्वी पर भेजने का वरदान मांगा। ब्रह्मा जी ने कहा कि गंगा के वेग को केवल भगवान शिव ही संभाल सकते हैं, तुम्हें उनको प्रसन्न करना होगा।

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तब भगीरथ ने भगवान शिव को कठोर तपस्या से प्रसन्न कर अपनी इच्छा व्यक्त की। तब भगवान शिव ने ब्रह्मा जी के कमंडल से निकली गंगा को अपनी जटाओं में रोक लिया और फिर उनको पृथ्वी पर छोड़ा। इस प्रकार गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण हुआ और महाराजा सगर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति हुई। भगीरथ की तपस्या से अवतरित होने के कारण गंगा को 'भागीरथी' भी कहा जाता है।

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