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Ganeshotsav 2020: बप्पा के चौथे अवतार हैं गजानन, जानें क्यों हुए थे अवतरित

Ganeshotsav 2020 जागरण अध्यात्म में आज हम आपके लिए श्री गणेश के चौथे अवतार की पौराणिक कथा लाए हैं। गणपति बप्पा का चौथा अवतार गजानन है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Thu, 27 Aug 2020 10:00 AM (IST)Updated: Thu, 27 Aug 2020 10:24 AM (IST)
Ganeshotsav 2020: बप्पा के चौथे अवतार हैं गजानन, जानें क्यों हुए थे अवतरित
Ganeshotsav 2020: बप्पा के चौथे अवतार हैं गजानन, जानें क्यों हुए थे अवतरित

Ganeshotsav 2020: जागरण अध्यात्म में आज हम आपके लिए श्री गणेश के चौथे अवतार की पौराणिक कथा लाए हैं। गणपति बप्पा का चौथा अवतार गजानन है। इनका जन्म लोभासुर नाम के एक दैत्य से देवताओं को मुक्ति दिलाने के लिए हुआ था। सभी देवताओं ने गणेश जी की उपासना कर उन्हें प्रसन्न किया था और फिर गणेश जी ने गजानन का अवतार लिया। तो चलिए पढ़ते हैं गणेश जी के गजानन अवतार में अवतरित होने की कथा।

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क्यों लिया था गणेश जी ने गजानन का अवतार:

एक बार कुबेर माता पार्वती और शिव जी से मिलने कैलाश पर्वत पहुंचे थे। वहां वो पार्वती जी के रूप को देख हतप्रभ रह गए। वो उन्हें निहारने लगे। यह बात पार्वती जी को पसंद नहीं आई। उनके डर से कुबेर ने अपनी दृष्टि उनसे हटा ली। लेकिन इससे कुबेर के मन में लोभ उत्पन्न हुआ और इसी से लोभासुर नाम का दैत्य उत्पन्न हुआ। इसने दैत्य गुरु शुक्राचार्य के पास जाकर दीक्षा प्रदान करने का आग्रह किया था। वो शुक्रचार्य के पास पहुंचा। वहां पर शुक्राचार्य ने लोभासुर को शिव जी का पंचाक्षरी मंत्र दिया।

इसके बाद लोभासुर एक वन में चला गया और वहां जाकर भस्म धारण की। उसने अन्न-जल त्याग दिया। वो शिव जी के ध्यान में लग गया और पंचाक्षारी मंत्र का जाप करने लगा। इसके लिए उसने सहत्रों वर्षों तक कठोर और अखण्ड तपस्या की। उसकी तपस्या से खुश होकर शिव जी उसके समक्ष प्रकट हुए। उन्होंने उससे वर मांगने को कहा। उसने शिव जी से तीनों लोकों में निर्भय होने का वर मांगा। शिव जी ने उसे इस वरदान का आशीर्वाद प्रदान किया।

यह वर पाने के बाद उसने दैत्यों की विशाल सेना एकत्र की। उसने पृथ्वी और स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। पृथ्वी पर उसने अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। स्वर्ग पर भी लोभासुर ने आक्रमण किया और इन्द्र को हरा दिया। वो लोभासुर से पराजित होकर अमरावती में वंचित हो गए। इस परेशानी से निजात पाने के लिए इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में गए। उन्होंने लोभासुर से निजात पाने की बात कही।

विष्णु जी ने लोभासुर के साथ युद्ध किया लेकिन उसे मिले वरदान के चलते श्री हरि पराजित हो गए। इससे लोभासुर का अहंकार बढ़ गया। उसने शिव जी को भी कैलाश को छोड़ने के लिए कहा। उसने कहा कि अगर उन्होंने कैलाश नहीं छोड़ा तो वो युद्ध करेगा। वरदान शिव जी ने ही दिया था और वो मजबूर थे। वो विवश होकर कैलाश से गणेश जी के पास पहुंचे। वहीं, रैभ्य मुनि की सलाह पर सभी देवगण भी गणेश जी की उपासना करने लगे। देवगण की उपासना से प्रसन्न होकर गणेश जी ने गजानन का अवतार लिया। उन्होंने वचन दिया कि वो लोभसुर से उन्हें मुक्ति दिलाएंगे।

शंकर जी ने लोभासुर को यह संदेश दिया और कहा कि वो गजानन के शरणागत हो जाए और शांतिपूर्ण जीवन बिताए। अगर ऐसा नहीं हुऐ तो वो युद्ध के लिए तैयार हो जाए। लोभासुर को गुरु शुक्राचार्य ने भी गजानन की महिमा बताई और मैत्री करने की सलाह दी। इसके बाद लोभासुर ने गजानन की महिमा को समझा और उनके शरणागत हो गया।


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