वासंतिक नवरात्र: महागौरी
मां दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। ग्रंथों में इनकी अवस्था आठ वर्ष की मानी गई है-अष्टवर्णा भवेद् गौरी। इनका वर्ण शंख व चंद्र के समान उज्ज्वल है। इनकी चार भुजाएं हैं। मां वृषभवाहिनी व शांतिस्वरूपा हैं।
मां दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। ग्रंथों में इनकी अवस्था आठ वर्ष की मानी गई है-अष्टवर्णा भवेद् गौरी। इनका वर्ण शंख व चंद्र के समान उज्ज्वल है। इनकी चार भुजाएं हैं। मां वृषभवाहिनी व शांतिस्वरूपा हैं। नारद पांचरात्र के अनुसार, शिव जी की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या करते हुए मां गौरी का शरीर धूल मिट्टी से ढककर मलिन हो गया था। जब शिवजी ने गंगाजल से इनके शरीर को धोया तब गौरी जी का शरीर गौर व दैदीप्यमान हो गया। तब ये देवी महागौरी के नाम से विख्यात हुई। मां के दिव्य स्वरूप का ध्यान हमारे गुण, कर्म, स्वभाव को परिष्कृत करके हमारे व्यक्तित्व व कृतित्व को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बनाता है। स्वाध्याय व चिंतन-मनन में प्रवृत्त करके हमारी सोई हुई शक्तियों को जाग्रत करता है। हमें चारित्रिक व नैतिक मूल्यों से ओतप्रोत करता है।
हम अपनी क्षमता योग्यता व प्रतिभा का सदुपयोग कर कष्ट व भय से मुक्त हो जाते हैं। मां की चार भुजाएं हमें धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति के लिए आवश्यक मेधा, ज्ञान व प्रज्ञा प्रदान करते हुए हमें आत्मिक प्रकाश की अनुभूति कराती हैं।
ध्यान मंत्र
श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेतांबरधरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा।।
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