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Bakrid Celebration 2019: क्यों मनाई जाती है बकरीद, क्या करते हैं इस दिन?

Bakrid Celebration 2019 ईद उल ज़ुहा को बकरीद भी कहा जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से यह त्योहार हर साल ज़िलहिज्ज के महीने में आता है।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Fri, 09 Aug 2019 04:01 PM (IST)Updated: Sun, 11 Aug 2019 04:00 PM (IST)
Bakrid Celebration 2019: क्यों मनाई जाती है बकरीद, क्या करते हैं इस दिन?
Bakrid Celebration 2019: क्यों मनाई जाती है बकरीद, क्या करते हैं इस दिन?

नई दिल्ली, जेएनएन। Bakrid Celebration 2019: 12 अगस्त को दुनिया के कई हिस्सों में ईद अल अज़हा का जश्न मनाया जाएगा। कहा जाता है कि ईद उल फितर के करीब दो महीने और 10 दिन यानि कुल 70 दिन बाद ईद उल ज़ुहा या ईद अल अज़हा का त्योहार मनता है। ईद उल ज़ुहा को बकरीद भी कहा जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से यह त्योहार हर साल ज़िलहिज्ज के महीने में आता है। अंग्रेज़ी कैलेंडर की तुलना इस्लामिक कैलेंडर थोड़ा छोटा होता है। इसमें 11 दिन कम माने जाते हैं। मुस्लिम समुदाय में ईद उल फितर की तरह इस ईद को भी अहम माना जाता है। 

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बकरीद का क्या है मतलब?
कई लोग बकरीद को बकरों से जोड़कर देखते हैं। जबकि इसका मतलब बकरे से नहीं है। दरअसल, अरबी भाषा में बक़र का मतलब होता है बड़ा जानवर, जिसे ज़िबा यानि जिसकी बली दी जाती है। यही शब्द बिगड़ कर अब भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में 'बकरा ईद' हो गया है।  

क्यों मनाई जाती है ईद उल अज़हा?
ये ईद मुसलमानों के पैग़म्बर और हज़रत मोहम्मद के पूर्वज हज़रत इब्राहिम की क़ुर्बानी को याद करने के लिए मनाई जाती है। मुसलमानों का विश्वास है कि अल्लाह ने इब्राहिम की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए अपनी सबसे प्यारी चीज़ की कुर्बानी मांगी थी। इब्राहिम ने अपने जवान बेटे इस्माइल को अल्लाह की राह में कुर्बान करने का फैसला कर लिया, लेकिन वो जैसे ही अपने बेटे को कुर्बान करने वाले थे अल्लाह ने उनकी जगह एक दुंबे को रख दिया। अल्लाह सिर्फ उनकी परीक्षा ले रहे थे।

कैसे मनाई जाती है ईद अल अज़हा?
जो लोग घर पर बकरे पालते हैं, वे ईद अल अज़हा के दिन अपने प्रिय बकरे की कुर्बानी देते हैं, लेकिन जिन लोगों के घर में बकरे नहीं पलते, वे ईद से कुछ दिन पहले बकरा खरीद लेते हैं। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग सुबाह की नमाज़ पढ़ते हैं। इसके बाद बकरे की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी के बाद बकरे के मीट के तीन हिस्से किए जाते हैं। पहला हिस्सा गरीबों को जाता है, दूसरा रिश्तेदारों को और तीसरा हिुस्सा अपने लिए रखा जाता है।   

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