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मेरे 'गोविंद', गोविंदा तुम

स्वामी हरिदास संगीत एवं नृत्य समारोह में बह रही सुर-सरगम की सरिता में उठी रोमांच की लहरों ने हर मन को सराबोर कर दिया। गोविंद के दर पर सिने अभिनेता गोविंदा नए अवतार में पहुंचे, संगीत सभा के श्रोता अगले ही पल 'दर्शक' की भूमिका में आ गए। फिर तो गोविंदा द्वारा गए भजन, सूफी गायक हंसराज हंस क

By Edited By: Published: Mon, 16 Sep 2013 08:59 PM (IST)Updated: Mon, 16 Sep 2013 09:14 PM (IST)

मथुरा, वृंदावन, जागरण संवाददाता। स्वामी हरिदास संगीत एवं नृत्य समारोह में बह रही सुर-सरगम की सरिता में उठी रोमांच की लहरों ने हर मन को सराबोर कर दिया। गोविंद के दर पर सिने अभिनेता गोविंदा नए अवतार में पहुंचे, संगीत सभा के श्रोता अगले ही पल 'दर्शक' की भूमिका में आ गए। फिर तो गोविंदा द्वारा गए भजन, सूफी गायक हंसराज हंस की आवाज और ख्यातिप्राप्त शास्त्रीय कलाकारों के भक्ति से डूबे गायन और नृत्य थे। इससे मन मथुरा-वृंदावन हो गया और तालियों की गूंज उठने लगी।

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स्वामी हरिदास संगीत एवं नृत्य महोत्सव के दूसरे और अंतिम दिन शनिवार को ध्रुपद व शहनाई वादन के बाद मंच पर अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त संगीतज्ञ पं. सलिल भट्ट अपने साथियों के साथ मोहन वीणा और लोक संगीत की प्रस्तुति देने पहुंचे। शास्त्रीय और राजस्थानी अंदाज में दी गई इस प्रस्तुति का संगीत प्रेमियों ने खूब आनंद उठाया। प्रस्तुति चल ही रही थी कि बीच में ही सिने अभिनेता गोविंदा के साथ प्रख्यात सूफी गायक हंसराज हंस भी पहुंच गए। इनके पहुंचते ही वहां मौजूद संगीत प्रेमियों के अलावा युवा और महिलाओं के उत्साह ने कुछ देर कलाकारों की प्रस्तुति को रोकने पर मजबूर कर दिया। कुछ ही देर में जब सबकुछ सामान्य हुआ, तो एकबार फिर से शुरू हुई राजस्थानी लोक संगीत और वीणा की जुगलबंदी में संगीतप्रेमी मंत्रमुग्ध हो गए।

इसके बाद मौका था उस कार्यक्रम का, जिसका श्रोता-दर्शकों को खास तौर पर इंतजार था। जैसे ही गोविंदा ने माइक संभाला, तो दर्शकों ने तालियों से उनका स्वागत किया। संगीत महोत्सव में अपने नए रूप की शुरुआत करते हुए सिने अभिनेता गोविंदा ने सबसे पहले 'जै राधे..' से दर्शकों का अभिवादन और बांकेबिहारी की नगरी में राधाजी को नमन किया। इसके बाद गोविंदा ने 'तीन साल से मेरी फिल्म रिलीज नहीं व्हाई.., ठाकुरजी की कृपा नहीं हुई व्हाई..' गीत सुनाकर श्रोताओं को रोमांचित किया। लगभग दस मिनट तक चली गोविंदा की इस प्रस्तुति ने मौजूद हजारों दर्शकों के दिल को छू लिया।

गोविंदा की प्रस्तुति के बाद मंच संभाला पं. असीम बंधु भट्टाचार्य व उनके साथियों ने। शास्त्रीय नृत्य की जो मनमोहक प्रस्तुति पं. भट्टाचार्य ने दी, उपस्थित कलाप्रेमी उसमें डूब गए।

अंत में मंच संभाला सूफी गायक हंसराज हंस ने। स्वामी हरिदास की साधना स्थली से हंसराज हंस ने उर्दू और हिंदी की जुगलबंदी करती प्रस्तुति दी, तो संगीत प्रेमी झूमते नजर आए। हंसराज हंस ने बांकेबिहारी एवं स्वामी हरिदास को समर्पित भजन 'दिल वो आबाद नहीं, जिसमें तेरी याद नहीं., सुनो महाराज. जगत के स्वामी..' सुनाया, तो प्रशंसकों की तालियां पंडाल में गूंजने लगीं। इसके बाद जैसे ही दूसरी प्रस्तुति 'छाप, तिलक सब छूटी रे. तुझसे अंखियां मिला के..' भजन गाकर श्रोताओं का दिल जीता। गीत-संगीत का यह सिलसिला देर रात तक चलता रहा। अंत में महोत्सव के समापन पर सचिव गोपी गोस्वामी ने कलाकारों, सहयोगियों एवं संगीत प्रेमियों का आभार जताया।

ये थे गोविंदा के भजन

मेरे गोविंद, गोविंदा तुम,

सारे जहां से सुंदर तुम।

क्यों नहीं आते मेरे तीर,

रहोगे हमसे कब तक दूर।

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ओए गोविंदा.!

कान्हा ने मटकी फोड़ी व्हाई..,

जग में खुशियां फैली व्हाई..।

यह सब है तेरा खेल,

ओए गोविंदा..।

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