फलों के बाद चले पत्थर, 150 घायल
रक्षाबंधन के दिन उत्तराखंड के चंपावत जिले के देवीधुरा में बग्वाल मेले के दौरान 14 मिनट तक 'योद्धा' एक-दूसरे पर फलों से हमला करते रहे लेकिन आखिरी वक्त में पत्थर भी चले। यह नजारा देख वहां जमा हजारों लोगों की सांसें थम गई। कुछ देर के इस युद्ध में करीब 150 से अधिक योद्धा घायल हो गए। क्षेत्र में द
चंपावत, जागरण संवाददाता। रक्षाबंधन के दिन उत्तराखंड के चंपावत जिले के देवीधुरा में बग्वाल मेले के दौरान 14 मिनट तक 'योद्धा' एक-दूसरे पर फलों से हमला करते रहे लेकिन आखिरी वक्त में पत्थर भी चले। यह नजारा देख वहां जमा हजारों लोगों की सांसें थम गई। कुछ देर के इस युद्ध में करीब 150 से अधिक योद्धा घायल हो गए। क्षेत्र में दो साल पहले तक पत्थरों से लड़े जाने वाले इस संघर्ष में हाई कोर्ट के आदेश के बाद फल और फूल इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
रविवार सुबह से ही देवीधुरा स्थित बारही मंदिर मैदान रण के लिए तैयार था। डेढ़ बजे आसपास के गांवों के योद्धाओं ने मां काली के गगनभेदी जयकारों के साथ फल लेकर मैदान में प्रवेश किया। मंदिर के पुजारी धर्मानंद पुजारी ने शंखनाद कर युद्ध शुरू करने का आदेश दिया और एक बजकर 48 मिनट पर बग्वाल शुरू हो गई। देखते ही देखते मां बाराही व महाकाली के जयघोष के साथ दोनों ओर से फलों की बौछार शुरू हो गई। इस परंपरा के अंतिम क्षणों में फलों के साथ पत्थर बरसने भी शुरू हो गए। इस दौरान मेला मजिस्ट्रेट अशोक जोशी व पुलिस बल रणबांकुरों से फलों से ही खेलने की गुहार करता रहे, लेकिन जोश इस कदर था कि किसी ने उनकी नहीं सुनी। ठीक दो बजकर दो मिनट पर शंखनाद के साथ ही युद्ध समाप्त घोषित किया गया। बाद में सभी लोगों ने एक-दूसरे के गले मिलकर कुशल क्षेम पूछी। युद्ध में 150 लोग घायल हुए। सभी घायलों का इलाज स्वास्थ्य विभाग द्वारा लगाए गए शिविर में किया गया।
इन एतिहासिक पलों का गवाह बनने अल्मोड़ा के सांसद अजय टम्टा, पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा, पिथौरागढ़ के जिला जज पीपी बिजल्वाड़, चंपावत के सीजेएम मनमोहन सिंह भी पहुंचे थे।
यूं शुरू हुई परंपरा
यहयुद्ध कब और क्यों शुरू हुआ, इसके बारे में ठीक-ठीक पता तो नहीं चलता, लेकिन मान्यता है कि करीब तीन सदी पहले मां बारही देवी के मंदिर में बलि प्रथा रोकने के लिए इस परंपरा की शुरुआत की गई थी।