Chandra Grahan 2020: क्या है चंद्र ग्रहण से जुड़ी परपंराएं? जानें मांद्य चंद्र ग्रहण के बारे में
Chandra Grahan आज इस वर्ष का आखिरी चंद्र ग्रहण है। ग्रहण के समय भगवान (चंद्रमा या सूर्य) को राहु ग्रसित करता है। इससे भगवान अत्यंत कष्ट में रहते हैं। ऐसे में अगर भक्त पूजा-पाठ करें तो इससे भगवान को बल प्राप्त होता है।
Chandra Grahan: आज इस वर्ष का आखिरी चंद्र ग्रहण है। ग्रहण के समय भगवान (चंद्रमा या सूर्य) को राहु ग्रसित करता है। इससे भगवान अत्यंत कष्ट में रहते हैं। ऐसे में अगर भक्त पूजा-पाठ करें तो इससे भगवान को बल प्राप्त होता है। साथ ही उन्हें कष्ट भी कम होता है। विद्वानों का कहना है कि ग्रहण के दौरान जितनी आराधना की जाए, उससे कई गुणा ज्यादा फल की प्राप्ति होती है। ग्रहण के समय पूजा-पाठ किया जाए तो प्रभु बेहद प्रसन्न हो जाते हैं। इस दौरान दान-दक्षिणा का भी बहुत महत्व है। इससे व्यक्ति के दोष और पाप का नाश हो जाता है। ज्योतिषाचार्य पं. दयानंद शास्त्री से जानते हैं चंद्र ग्रहण से जुड़ी परपंराओं के बारे में-
ग्रहण के बाद नदी-तालाब में नहाने की परंपरा:
प्राचीन समय से ही भारतीय संस्कृति में ग्रहण के बाद नहाने की परंपरा है। माना जाता है कि ग्रहण के बाद अगर नहाया जाए तो इससे व्यक्ति का शुद्धिकरण हो जाता है। ग्रहण समाप्ति के बाद किसी तीर्थ स्थान या नदी, तालाब, सरोवर में नहाने की परंपरा है। अगर आप किसी तीर्थ स्थान या नदी, तालाब, सरोवर में स्नान करने नहीं जा पा रहे हैं तो घर में ही स्वच्छ पानी में गंगाजल डालकर स्नान कर लेना चाहिए।
ग्रहण के दौरान भोजन न करने की परंपरा:
ग्रहण के दौरान भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। कहा यह भी जाता है कि ग्रहण में लगने वाले सूतक काल में खाना नहीं बनाना चाहिए। ग्रहण खत्म होने के बाद ही भोजन करना चाहिए। अगर ग्रहण के दौरान भोजन बना हुआ हो तो उसमें तुलसी के पत्ते डाल देने चाहिए। इससे भोजन शुद्ध हो जाता है।
जानें क्या होता है मांद्य चंद्र ग्रहण:
मांद्य चंद्र ग्रहण सामान्य चंद्र से अलग होता है। इसमें पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा ये तीनों एक सीधी रेखा में नहीं होते हैं। यह ऐसी स्थिति होती है जब पृथ्वी की केवल एक हल्की-सी छाया चंद्रमा पर पड़ती है। इसमें चंद्रमा का आकार घटता या बढ़ता नहीं है। इस चंद्र ग्रहण में चंद्रमा सामान्य आकार का ही दिखाई देता है।
नहीं होता वास्तविक चंद्र ग्रहण:
पेनुमब्रल को उपच्छाया चंद्र ग्रहण भी कहते हैं। जो उस स्थिति में बनता है जब चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया न पड़कर केवल उसकी उपच्छाया मात्र पड़ती है। ऐसा तब होता है जब चंद्रमा धरती की वास्तविक छाया में न आकर उसकी उपच्छाया से ही वापस लौट जाता है। वास्तविक चंद्र ग्रहण की तरह इस उपच्छाया चंद्र ग्रहण में चांद के आकार पर कोई असर नहीं पड़ता और ना ही चंद्रमा का कोई भाग ग्रस्त होता दिखाई देता है। लेकिन चंद्रमा पर एक धुंधली सी छाया नजर आती है। ये ग्रहण विशेष तरह के उपकरणों से ही आसानी से समझा जा सकता है।
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