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होलिका चिंताओं की, होली भस्मी चिताओं की

एक ओर जलते शव दूसरी तरफ होलिका चिंताओं की। क्या धरती और क्या अंबर सब लाल गुलाल और इनसे एकाकार हुई भस्मी चिताओं की जो बाबा के मस्तक पर चढ़ी और निहाल हो गई। उनके गणों के भावों से मिली, हर हर महादेव के घोष रूप में हवा में घुली और सुर ताल हो गई। कुछ ऐसे अनूठे अंदाज में अनोखी काशी की अद्भूत होली गुरु

By Edited By: Published: Fri, 14 Mar 2014 12:40 PM (IST)Updated: Fri, 14 Mar 2014 01:22 PM (IST)

वाराणसी। एक ओर जलते शव दूसरी तरफ होलिका चिंताओं की। क्या धरती और क्या अंबर सब लाल गुलाल और इनसे एकाकार हुई भस्मी चिताओं की जो बाबा के मस्तक पर चढ़ी और निहाल हो गई। उनके गणों के भावों से मिली, हर हर महादेव के घोष रूप में हवा में घुली और सुर ताल हो गई। कुछ ऐसे अनूठे अंदाज में अनोखी काशी की अद्भूत होली गुरुवार को महाश्मशान पर खेली गई।

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काशी पुराधिपति अभी एक दिन पहले ही गौरा को गौना कराकर ले आए। भक्तों ने माथे गुलाल मला और नेग रूप में होली खेलने की परमिशन ले होलियाए। इसके 24 घंटे भी न बीते, तिरस्कृतों को अपनाने वाले और दुनिया का गरल सहज ही गटक जाने वाले बाबा महाश्मशान मणिकर्णिका चले आए। गण मंडल अघाया, बाबा के मुरीद मानव तो थे ही, अदृश्य रूप देव, दानव, भूत पिशाच और प्रेत दल भी खिंचा चला आया।

औघड़दानी के साथ चिता की भस्म और गुलाल के साथ फाग रचाया। ऊंच-नीच, पंग-अपंग, राजा-रंक के भेदभाव से कोसों दूर। उल्लास अथाह और अनंत उमंग जिसे देख कोई भी दंग रह जाए। चिता की भस्म का धूसर रंग गुलाल के चटख अंग को अध्यात्म का अनुशासन देते। राग विराग की इस साझा होली में डोमराज शिव स्वरूप तो बाबा के भक्तजनों की टोली गण रूप में थी।

माना जाता है कि भगवान शंकर ने श्मशानघाट पर सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की डोमराजा के रूप में परीक्षा ली थी इसलिए उन्हें शिव का प्रतीक माना जाता है। यह भी मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ महाश्मशान में वास कर तारक मंत्र देते हैं। इस उपलक्ष्य में ही रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन राग रंग बाबा के विराग अंग को उत्सवी सम्मान देते हैं। इसके तहत भक्तों ने मणिकर्णिका घाट स्थित मंदिर में महाश्मशाननाथ का सुबह सवेरे फूलों से श्रृंगार किया। दोपहर 12 बजे धूप -कपूर से आरती उतारी और सब पर भजन गीतों के साथ छा गई होली की खुमारी। डमरू की थाप, घंटा घड़ियाल व शंखनाद तो भोले के गण रूप भक्तों से श्मशान आबाद। बाबा के माथे पर चिता भस्म सजाया और गंगा तट हर हर महादेव के उद्घोष के बीच राग विराग के दोनों रंगों से एक साथ नहाया। इसमें डोमराज परिवार, क्षेत्रीय नागरिक, स्थानीय दुकानदार और वह भी जो किसी अपने के बिछड़ने के दुख से जार-जार यहां आए थे। अनूठी होली में शामिल हुए।

अनूठी काशी, अद्भूत उत्सव- महाश्मशान पर भोले के फाग रंग का विराग अंग, गणों संग खेली होली।

छ: मुहानी बनी कौमी एकता की मिसाल-गंगा जमुनी तहजीब की जिंदा मिसाल चौहट्टालाल खां की छ:मुहानी है जो कौमी एकता की मिसाल के रूप में याद की जाती है। इस स्थान पर प्रतिवर्ष होलिका दहन के अलावा विभिन्न धर्मो के अनेक कार्यक्रम होते हैं। शिया हजरात की ओर से सातवीं मुहर्रम को मेहंदी का जुलूस व 24 मुहर्रम को शब्बेदारी होती है। इसमें कई अंजुमनें शिरकत करती हैं। नौवीं मुहर्रम को इसी स्थान पर सुन्नी हजरात ताजिया बैठाते हैं। सुन्नी हजरात की ओर से ही रबीउल अव्वल में जश्न ईदमिलादुन्नबी (सल्ल.) में उलमा की तकरीर होती है। अतहर बनारसी व कांग्रेसी नीलम खां ने बताया कि कुछ ही गैर मुस्लिमों का परिवार यहां सदियों से रह रहा है। कभी किसी प्रकार का विवाद नहीं होता। सभी लोग एक दूसरे के दुख-सुख में शरीक होते हैं।


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