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Pitru Paksha 2020: पितरों की तृप्ति के लिए भगवान राम और पितामह भीष्म ने भी किया था पिंडदान, पढ़ें कथा

Pitru Paksha 2020 पितरों के श्राद्धकर्म के लिए पितृपक्ष का प्रारंभ हो रहा है। पढ़ें भगवान राम और पितामह भीष्म के पिंडदान की कथा।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Mon, 17 Aug 2020 03:17 PM (IST)Updated: Wed, 02 Sep 2020 06:59 AM (IST)
Pitru Paksha 2020: पितरों की तृप्ति के लिए भगवान राम और पितामह भीष्म ने भी किया था पिंडदान, पढ़ें कथा

Pitru Paksha 2020: पितरों के आत्म तृप्ति के लिए समर्पित​ पितृ पक्ष का प्रारंभ हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होता है। इस वर्ष पितृपक्ष का प्रारंभ 2 सितंबर दिन बुधवार से हो रहा है। पितृपक्ष के 15 दिनों में पितरों के तर्पण और पिंडदान का भी महत्व होता है। स्नान आदि करने के बाद पितरों को पिंडदान करने से उनकी आत्माएं तृप्त होती हैं और अपनी संतानों के सुखी और समृद्ध जीवन का आशीर्वाद देती हैं। पितृपक्ष पितृ तर्पण के लिए बहुत उत्तम माना गया है, इसलिए इस समय में किसी नदी के तट पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और दान करना चाहिए। इससे व्यक्ति को पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

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रामायण काल हो या फिर महाभारत, दोनों ही महाकालों में पिंडदान की महत्ता के बारे में बताया गया। चाहें भगवान राम हों या फिर पितामह भीष्म दोनों ने ही अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया था। आइए पिंडदान की महत्ता के बारे में जानते हैं।

नारद पुराण में बताया गया है कि भगवान श्रीराम जब पितृ तीर्थ गया जी के रुद्र पद में आए थे, तो अपने पिता आदि को पिंडदान किया था। तब उस समय स्वर्ग वासी राजा दशरथ स्वर्ग से हाथ फैलाए हुए वहां पहुंचे थे। भगवान श्रीराम ने उनके हाथों में वह पिंडदान नहीं किया, बल्कि पिंड को रुद्रपद पर ही रख दिया। तब राजा दशरथ जी ने उनसे कहा था कि पुत्र! तुमने मुझे तार दिया। रुद्रपद पर पिंड देने से उनको रुद्रलोक की प्राप्ति हुई है। तुम अनंत काल तक राज्य का शासन करोगे, अपनी प्रजा का पालन करोगे तथा दक्षिणा सहित सभी यज्ञों का अनुष्ठान करने के बाद विष्णु लोक को प्रस्थान करोगे। तुम्हारे साथ ही अयोध्या के सभी नागरिक, पशु पक्षी तक विष्णु लोक वैकुंठधाम जाएंगे। राजा दशरथ ये बातें श्रीराम जी से कहकर रुद्र लोक चले गए। इसके बाद भगवान श्रीराम ने पिंडदान की प्रक्रिया विधिपूर्वक पूरी की और आत्म संतोष प्राप्त किया।

एक ऐसी ही कथा महाभारत ​काल की है। पितामह भीष्म ने गया जी में विष्णु पद पर श्राद्ध कर्म विधि विधान से किया था। गया​शिर में जब वे अपने पितरों का आवाहन करते हुए पिंडदान के लिए आगे बढ़े तो उनके पिता शान्तनु अपने दोनों हाथों को आगे करके प्रकट हो गए। तब भीष्म ने भूमि पर ही पिंड दिए, न कि पिता के हाथों में। अपने पूर्वजों के हाथों में पिंडदान करने का विधान नहीं है। अपने पुत्र भीष्म के व्यवहार से खुश होकर शान्तनु ने कहा कि तुम अपने सिद्धातों पर डटे हुए हो, इसलिए तुम त्रिकालदर्शी होगे और जीवन के अंत में तुमको भगवान विष्णु प्राप्त होंगे। इतना ही नहीं, जब तुम चाहोगे तभी तुम्हारी मृत्यु होगी। ऐसा कहकर शान्तनु वहां से तृप्त होकर चले गए।


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