कोसी में दिखी गंगा-जमुनी तहजीब
गर्भाधान काल बीत गया। समय चक्र तेजी से घूमा। नौ महीने पहले ही कुछ सिरफिरों ने कुछ घूंट पानी के लिए कोसी के दामन पर दाग लगा दिया था। देश-दुनिया में शर्मिदा हो गया था ब्रज।
मथुरा। गर्भाधान काल बीत गया। समय चक्र तेजी से घूमा। नौ महीने पहले ही कुछ सिरफिरों ने कुछ घूंट पानी के लिए कोसी के दामन पर दाग लगा दिया था। देश-दुनिया में शर्मिदा हो गया था ब्रज। कुकृत्य ही सही, पर परिणाम तो आना ही था। यमुना मैया तब भी मूक गवाह थी और आज भी। .पर आज कालिंदी अपने कष्ट थोड़ी देर को बिसरा बैठी है, प्रफुल्लित है आज का दृश्य देख। लोगों के मनों की खटास भी प्रसूता चुपके से चट कर गई। शायद खट्टा खाने को मन ललचाया होगा।
सूर्यपुत्री के हृदय में शीतलता का अहसास हो रहा है। प्रसन्न है कि मुक्ति को हुंकार भरती पदयात्रा आज भाई शनिदेव के आंगन में जा डटी है। गदगद है कि ऐसी भीड़ बीते दिनों कभी नहीं जुटी। भक्तों पर फूल बरसाए जा रहे हैं। माला पहनाई जा रही हैं। जमकर मिठाई बंट रही है। हर्षित है कि पदयात्रियों के आगमन पर मंदिर पुलकित है, तो मस्जिद भी कम खुश नहीं।
आनंदित है, यह सोच कि स्टेशन पर बने फ्लाई ओवर से उतरता रेला अभूतपूर्व है, तो पुल के नीचे स्वागत को जुटा जन समूह अद्भुत। कुछ-कुछ ऐसा ही तो मेरे संगम पहुंचने पर बहन गंगा करती है। दोनों मिलकर लोगों के पाप धोते हैं। .पर इस संगम की बात ही कुछ और है। इसने तो उस दाग को भी धो डाला, जो पिछले साल एक जून को दंगे के रूप में लगा था। ब्रज क्षेत्र के अंतिम पड़ाव पर सब कुछ देख यमुना मैया की आशा कुछ प्रबल हुई, अब मेरी धार अविरल हो पाएगी।
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