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Holi 2019: युधिष्‍ठिर ने करवाया था होली का आरंभ

होली के त्‍योहार का स्‍वरूप ही अदभुद है जिसमें अग्‍नि की पवित्रता और रंगों की शीतलता से भरा उल्‍लास शामिल हैं। जानें होलिका की कहानी पंडित दीपक पांडे से।

By Molly SethEdited By: Published: Wed, 28 Feb 2018 10:02 AM (IST)Updated: Wed, 20 Mar 2019 09:32 AM (IST)
Holi 2019: युधिष्‍ठिर ने करवाया था होली का आरंभ
Holi 2019: युधिष्‍ठिर ने करवाया था होली का आरंभ

सतरंगी है होली

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होली एक ऐसा त्यौहार है जिस की सांस्कृतिक विरासत अत्यंत समृद्ध है इसी कारण इसे सतरंगी त्योहार कहा जाता है एक और जहां इसकी पौराणिक धार्मिक महत्‍ता है। वहीं दूसरी ओर साहित्य संगीत चित्रकला सामाजिक समरसता इत्यादि से संबंधित परंपराएं भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। जानें कि किस तरह से महत्वपूर्ण है होली का पौराणिक धार्मिक स्‍वरूप और इसकी समृद्ध परंपरा।

नारद का आग्रह

होली में माघ पूर्णिमा पर सूंते गए डंडे से सटा करके लकड़ियों और कंडों का ढेर लगा जाता है इससे बने स्वरूप को ही होलिका कहते हैं। होलिका का विधि विधान से पूजन किया जाता है और सामूहिक रूप से विधि विधान से दहन किया जाता है। भविष्य पुराण के अनुसार नारद के आग्रह पर युधिष्ठिर ने इस त्यौहार को आरंभ कराया था। नारद जी ने युधिष्ठिर से कहा था महाराज फाल्गुन पूर्णिमा के दिन प्रजा को अभयदान मिलना चाहिए ताकि सभी पूरे उल्लास के साथ यह दिन व्यतीत कर सकें।

होली का उत्‍सव

तब युधिष्‍ठिर ने कहा कि बालक, युवा गांव के बाहर से लकड़ी और एपन मिलाकर ढेर लगा के होलिका बनाएं। इसका पूर्ण विधि से पूजन करके दहन करें। ऐसा करने से अनिष्ट का नाश होगा। द्वापर युग में अंतर से युधिष्ठिर के आदेश पर यह परंपरा शुरू हुई। इस दिन  भारत में जहां रवि की फसल खेत में तैयार हो जाती है वहां नव निष्ठा यज्ञ पर्व भी मनाया जाता है। कुछ जगह इसको सुला कहा जाता है। कुछ लोग होलीका यज्ञ में हवन करके प्रसाद बांटते हैं और उसे चाय के साथ खाया जाता है। 


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