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पहला दर्शन कौल कंडोली

भगवान राम की आज्ञा से ही माता वैष्णो देवी जी ने पांच साल की कन्या के रूप में कटड़ा की ओर प्रस्थान किया था। लंबी यात्रा के बाद माता वैष्णो देवी जम्मू से 15 किलोमीटर उत्तर की ओर एक पहाड़ी गांव कौल कंडोली (नगरोटा)पहुंची। यह स्थान माता को बहुत पसंद आया।

By Edited By: Published: Mon, 22 Oct 2012 01:08 PM (IST)Updated: Mon, 22 Oct 2012 01:08 PM (IST)
पहला दर्शन कौल कंडोली

जम्मू। भगवान राम की आज्ञा से ही माता वैष्णो देवी जी ने पांच साल की कन्या के रूप में कटड़ा की ओर प्रस्थान किया था। लंबी यात्रा के बाद माता वैष्णो देवी जम्मू से 15 किलोमीटर उत्तर की ओर एक पहाड़ी गांव कौल कंडोली (नगरोटा)पहुंची। यह स्थान माता को बहुत पसंद आया। इसलिए उन्होंने यहीं तपस्या करने का निश्चय किया। गांव के बच्चे भी जंगल में माता के साथ आकर खेलते तथा झूला झूलते। माता का झूला आज भी यहां है। बच्चों को जब प्यास लगती तो माता अपने कटोरे (कौले) को थोड़ा सा हिलाती और उसमें से पानी आ जाता। आज उस स्थान पर एक पवित्र बावली है। जिसका पानी वर्ष भर ठंडा और मीठा होता है। माता ने इस स्थान पर 12 साल तक तपस्या की। वहीं अज्ञात वास के दिनों में पाण्डवों ने कन्या के रूप में माता वैष्णों के दर्शन किये और माता का मंदिर बनवाया जो आज भी यहां मौजूद है। यही वह स्थान है जहां माता ने यज्ञ एवं महाभोज का आयोजन किया था। जिसमें 33 करोड़ देवताओं को आमंत्रित किया गया था। उस यज्ञ में गुरू गोरख नाथ जी का एक शिष्य भैरव भी था। जो भगवती की सुदंरता पर मोहित हो गया और यज्ञ में मांस एवं मंदिरा की इच्छा जताने लगा। भैरव ने माता को स्पर्श करने के लिए अपना हाथ बढ़ाया तो माता ने अपने आप को इस स्थान पर पिण्डी के रूप में स्थापित किया और त्रिकुटा पर्वत की ओर चल पड़ी।

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क्योंकि माता ने नगरोटा (कौल कंडोली) में 12 वर्ष तक तपस्या की थी इसलिए यात्रियों की टोलियां माता के प्राचीन मंदिर कौल कंडोली में ही ठहरती थी। अगले दिन यात्री स्नान करके मंदिर में स्थापित माता की पिंडी के दर्शन करके अगला सफर आरंभ करते थे। क्योंकि यात्रा के दौरान यह पहला पड़ाव था इसलिए पहला दर्शन के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

जम्मू से वैष्णो देवी के रास्ते में नगरोटा में स्थित इस मंदिर का मौजूदा समय में खासा विकास किया गया है। मंदिर का आधा हिस्सा पुश्तैनी पुजारियों की देखरेख में है जबकि आधे हिस्से पर सीआरपीएफ की सुरक्षा है। दोनों ही हिस्से अत्यंत आकर्षक एवं भव्य हैं। श्रद्धालु यहां आकर माता के झूले में झूलना नहीं भूलते। वहीं मनोकामना पूरी होने पर यहां झूला चढ़ाने का भी विधान है।

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