अभिमान से बचें
अभिमान मनुष्य के जीवन का एक भयानक विकार है। वैसे अभियान के पर्यायवाची शब्दों में अहंकार, मिथ्याज्ञान, गर्व, घमंड हैं। अभिमान के विकार से हर वर्ग के लोग ग्रस्त रहे हैं।
अभिमान मनुष्य के जीवन का एक भयानक विकार है। वैसे अभियान के पर्यायवाची शब्दों में अहंकार, मिथ्याज्ञान, गर्व, घमंड हैं। अभिमान के विकार से हर वर्ग के लोग ग्रस्त रहे हैं। उनमें राजपुरुष, क्षमता-विशेष से प्रभावित, तपस्वी, किसी को आवश्यकता से अधिक सम्मान मिलने पर, कभी निर्धनता से धनवान होने पर, पद-प्रतिष्ठा पाकर यह रोग लग जाता है। यद्यपि इस रोग से इन सभी का व्यक्तित्व आहत होता है। समाज से वे बहिष्कृत हो जाते हैं। उनके जीवन का सुख और शांति नष्ट हो जाती है। ऐसे अभिमान से उनका जीवन नरक हो जाता है। अभिमानी, अहंकारी, घमंडी मनुष्य की शक्ति दिन-प्रतिदिन घटती जाती है। उसका समाज में आदर, सम्मान क्षीण से क्षीणतर होता जाता है। अभिमानी व्यक्ति अपने को समाज में सर्वश्रेष्ठ मानकर मानवता से विरत हो जाता है। इसलिए अपने व्यक्तित्व को यदि विकसित करना हो तो अभिमान या घमंड से अपने को बचाने का प्रयत्न करना चाहिए।
अभिमान से ग्रस्त व्यक्ति को इसके उपचार के लिए सत्संग, लोकसेवा और प्रभु के स्मरण का आश्रय लेना चाहिए। अभियान के रोग का यही इलाज है। इससे अभिमानी की अंतरात्मा धीरे-धीरे इससे मुक्ति पा जाएगी और ये स्वस्थ मानसिकता के आधार पर आध्यात्मिक भाव से जुड़ने लगेंगे। समाज इनको श्रद्धाभाव से देखने लगेगा। इस संदर्भ में बड़े उदाहरण मिलते हैं। आचार्य कौशिक ने तपस्या के बल पर यह शक्ति अर्जित कर ली थी कि वे जिसे घूरती आंखों से देख लेते तो वह भस्म हो जाता था। बताया जाता है कि इसका प्रयोग उन्होंने भिक्षाटन के समय एक पतिव्रता स्त्री पर किया, पर उनकी शक्ति उसके आगे निष्फल हो गई। उन्होंने अपनी भूल स्वीकार की और उस पतिव्रता स्त्री से क्षमायाचना की। साथ ही सच्ची लगन से तपस्या करने लगे और लोकहित चिंतन उनका उद्देश्य बन गया।
धनंजय अवस्थी
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