अमरनाथ यात्रा: अमरत्व की यात्रा
जीवन कभी दुर्गम पहाड़-सा लगता है तो कभी समतल सपाट मैदान जैसा। कभी झरनों सा प्रफुल्लित तो कभी नदियों सा रहस्यमय। जीवन के इसी भाव-अनुभाव के बीच अमरत्व का आभास कराती है अमरनाथ यात्रा, जो 25 जून से शुरू हो रही है..
यदि रोटी तवे पर एक ही तरफ पड़ी रहे तो वह भी जलने लगती है। उसे पलटते रहें, तभी वह सुंदर, स्वादिष्ट और सुपाच्य बन पाती है। यही सिद्धांत जीवन के साथ भी लागू होता है। निरंतर चलते रहने के कारण नदियां तालाबों की तुलना में पवित्र मानी जाती हैं। जीवन को संपूर्णता में जीने के लिए जरूरी है कि उसमें बदलाव होता रहे। इसी सोच को ध्यान में रखते हुए मनीषियों ने देशाटन, पर्यटन या यात्राओं की शुरुआत की। यात्राएं जीवन की नीरसता को तोड़कर उसमें नई ऊर्जा का संचार करती हैं। ये यात्राएं हमें आध्यात्मिक शुद्धि के साथ प्रकृति से एकाकार होने का अवसर भी उपलब्ध करवाती हैं। ऐसी ही है पवित्र अमरनाथ यात्रा। मैदानों, पहाड़ों, झीलों और सरोवरों से होकर गुजरने वाली इस यात्रा के दौरान पूरा वातावरण शिवमय हो जाता है। इस वर्ष इसकी शुरुआत 25 जून से हो रही है, जो 2 अगस्त को पूर्ण होगी।
श्रावण मास को शिव आराधना के लिए सर्वोत्तम माना गया है। इसी पवित्र मास में समुद्र तल से तकरीबन 13,600 फुट की ऊंचाई पर अमरनाथ गुफा में पवित्र हिमलिंग का निर्माण होता है। यह हिमलिंग चंद्रमा के आकार के साथ बढ़ता और घटता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूर्ण विकसित रूप में दिखाई देता है। इसी पवित्र हिमलिंग के दर्शन के लिए देश भर से लाखों श्रद्धालु पवित्र अमरनाथ यात्रा के लिए आते हैं।
हिमलिंग के संदर्भ में एक प्राचीन कथा भी है। कहा जाता है कि एक बार मां पार्वती ने भगवान शिव से अमरत्व का रहस्य जानना चाहा। इसके लिए भगवान शिव ने जिस निर्जन स्थान की तलाश की, वह यही अमरनाथ गुफा है। रास्ते भर वे अपने शरीर पर मौजूद रहने वाले जीवों, तत्वों और प्रतीकों को छोड़ते चले गए। यात्रा के दौरान वे स्थान उन्हीं नामों के साथ आज भी यात्रियों को मिलते हैं। अपने नंदी बैल को उन्होंने जहां छोड़ा वही स्थान आज पहलगाम (बैल ग्राम का तद्भव रूप) के नाम से जाना जाता है। यहीं से होती है यात्रा की औपचारिक शुरुआत। इसके बाद उन्होंने अपने साथ लिपटे रहने वाले अनंत नागों, मस्तक के चंद्रमा, ढेरों पिस्सुओं और अंत में शेषनाग को मार्ग में छोड़ दिया। यही स्थान यात्रा मार्ग में अनंतनाग, चंदनबाड़ी, पिस्सूटॉप और शेषनाग के नाम से मौजूद हैं।
16वीं शताब्दी में इस गुफा की खोज एक मुसलमान गडरिये बूटा मलिक ने की थी। आज भी यात्रा से प्राप्त चढ़ावे का एक भाग उनके परिवार को जाता है। इस तरह इसे धार्मिक सद्भाव की यात्रा भी कहा जा सकता है। रास्ते भर पिट्ठू वाले, पौनी वाले, लंगरों में सेवा में लगे सेवादार अपने धर्म के लिए नहीं, बल्कि सेवा भाव के लिए जाने जाते हैं। वरिष्ठ लेखक डॉ. ओम गोस्वामी यात्रा के संदर्भ में अपने अनुभव सांझा करते हुए कहते हैं, वहां पहुंचकर मुझे ऐसा लगा जैसे मैं जीते जी स्वर्ग में आ गया हूं। सारा वातावरण शिवमय हो जाता है। स्वच्छ हवा, साफ-सुथरे पहाड़, दरिया का बहता ठंडा पानी। प्रकृति बाहें फैलाए आपके समक्ष होती है। दुनियावी विकार सब पीछे छूट जाते हैं। मन अपने आप से बातें करने लगता है। हर ओर से बम बम भोले और ओम नम: शिवाय की ध्वनि सुनाई देती है। वहां पहुंचकर लगता है कि अंतत: हम सबकी यात्रा एक ही है। सबको उसी प्रभु के चरणों में पहुंचना है। उसके सामने अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष, छोटा-बड़ा सब एक बराबर हैं।
इस यात्रा के रोमांचक पहलू पर बात करते हुए व्यवसायी निखिल शर्मा कहते हैं, हम पांच दोस्तों का समूह है। पिछले सात वर्षो से हम लगभग हर दूसरे वर्ष अमरनाथ यात्रा के लिए जाते हैं। यह हमारे लिए किसी रोमांच से कम नहीं है। दुर्गम पहाड़ों, नदियों को पार करते हुए यात्रा करने का जो मजा है, वह शॉर्टकट में कहां। इसलिए हम हमेशा उसी पारंपरिक मार्ग से यात्रा करते हैं। यात्रा के बाद हम फिर से तरोताजा हो जाते हैं।
आध्यात्मिक शांति, प्राकृतिक स्वच्छता और रोमांच से लबरेज अमरनाथ यात्रा अब सिर्फ साधु-संतों या मोक्ष-कामियों की ही यात्रा नहीं रही। दिनों दिन इसमें युवाओं और महिलाओं की संख्या भी बढ़ रही है। यात्रा के लिए भक्तों के उत्साह का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यात्रा शुरू होने से तकरीबन 12 दिन पहले ही यात्रा पंजीकरण करवाने वाले श्रद्धालुओं का आंकड़ा तीन लाख को पार कर गया।
अनिवार्य है स्वास्थ्य प्रमाण-पत्र
यात्रा मार्ग अत्यंत दुर्गम और मौसम के लिहाज से असुरक्षित है। हजारों फुट की ऊंचाई पर कुछ रास्ते बेहद संकरे और दुर्गम हैं। बेहद ऊंचे और बर्फीले स्थानों पर ऑक्सीजन कम हो जाती है। इसलिए इस यात्रा पर उन्हें ही जाना चाहिए, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से फिट हों। पिछले वर्ष यात्रा में जान गंवाने वाले सौ के करीब श्रद्धालुओं में से अधिकतर की मृत्यु हृदय गति रुकने से हुई थी। इसलिए इस बार प्रशासन ने यात्रा के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट अनिवार्य कर दिया है।
ताकि जुड़ा रहे संवाद
जम्मू-कश्मीर में राज्य के बाहर के प्रीपेड मोबाइल काम नहीं करते। इसलिए यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए बीएसएनएल ने एक यात्रा कार्ड जारी करने की योजना बनाई है। सात दिन की वैलिडिटी के साथ यह कार्ड 100 रुपये के भुगतान पर मिल सकता है। यह कार्ड केवल यात्रियों को ध्यान में रखकर शुरू किया गया है। इसलिए सात दिन के बाद इसे रिचार्ज नहीं किया जा सकेगा।
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