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न च वेदसमं शास्त्रं, न तीर्थ गंगया समम् स

धर्म-कर्म की नगरी वाराणसी पुण्य गंगा के तट पर बसी हुई है। यह सत्य है कि गंगा एक पौराणिक नदी हैं। गंगोत्री से उद्भूत होकर हरिद्वार, प्रयाग और काशी होती हुई गंगासागर तक की यात्रा पूरी कर वे बंगाल की खाड़ी में मिल गई हैं।

By Edited By: Published: Fri, 18 May 2012 10:43 AM (IST)Updated: Fri, 18 May 2012 10:43 AM (IST)

बनारस। धर्म-कर्म की नगरी वाराणसी पुण्य गंगा के तट पर बसी हुई है। यह सत्य है कि गंगा एक पौराणिक नदी हैं। गंगोत्री से उद्भूत होकर हरिद्वार, प्रयाग और काशी होती हुई गंगासागर तक की यात्रा पूरी कर वे बंगाल की खाड़ी में मिल गई हैं। यह भी सत्य है कि गंगा के समान अन्य कोई तीर्थ नहीं है- न च वेदसमं शास्त्रं, न तीर्थ गंगया समम् इससे भी बड़ा सत्य है कि गंगा हम लोगों की मां हैं - जीवनदायिनी मां और हम हैं उनकी संतान। जीवनदायिनी और मुक्तिदायिनी मां गंगा के साथ हमारी आस्था जुड़ी हुई है। यह अन्यंत दुखद स्थिति है कि आज हमारे कुकृत्य ही मां की अविरलता और निर्मलता को प्रभावित कर रहे हैं। गंगा दुर्बल हो रही हैं, सूख रही हैं, पाट छोड़ रही हैं - ऐसा क्यों? मां का जल दूषित हो उठा है और अब आचमन योग्य भी नहीं रह गया - इसके लिए दोषी कौन है? मां गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए हम-सभी चिन्तित हैं। गंगा-मुक्ति अभियान को हर वर्ग, जाति, धर्म के लोग समर्थन दे रहे हैं। साधु-संत और प्रबुद्ध जनों का मन आंदोलित हो उठा है। हमारा अर्थात जनता और सरकार दोनों का ही कर्तव्य है कि मां गंगा को अविरल और निर्मल बनाए रखने में अपना योगदान दें। विकास की दौड़ में हम पीछे न रह जाएं, इस लिए विद्युत-संयंत्र लगाए जा रहे हैं। विद्युत-उत्पादन के लिए बांध बनाने के कार्य में सरकार लगी हुई है, पर नदी पर बनने वाले बांध नदी के प्रवाह में बाधा उत्पन्न कर रहें हैं। टिहरी बांध ने गंगा नदी के संपूर्ण प्रवाह में अवरोध उत्पन्न किया है। आवश्यकता है कि विद्युत-उत्पादन के अन्य विकल्प ढ़ूंढे़ जाएं। नदियों के मूल्य पर विकास, भविष्य में हानिकर भी हो सकता है। सीवर से नित्य ढेरों सीवेज निकलता है। अभी वह गंगा में गिरता है। इससे भी गंगा मैली हो रहीं हैं। सीवर से निकला सीवेज, कचरा-कूड़ा आदि अन्यत्र एकत्रित करने से गंगा-जल भी निर्मल होगा और यदि उनसे विद्युत-उत्पादन संभव हो सके तो एक विकल्प भी मिल जाएगा। मोक्षदायिनी गंगा का जल निर्मल बना रहे, इस दृष्टि से हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम गंगा में किसी प्रकार की गंदगी न जाने देंगे। संकल्प ही न लें, बल्कि संकल्प को क्त्रियान्वित भी करें। जय मां गंगे। लेखक प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं।

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