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असंतोष का परिणाम अत्यंत विनाशकारी

श्री शिरडी साईं संध्या मंदिर स्थित द्वारका माई सभागार से साप्ताहिक प्रवचन करते हुए श्री साईं चरणानुरागी भाई डा. कुमार दिलीप सिंह ने कहा कि कर्मफलजनित प्रारब्ध एवं प्रभु-कृपा से जो कुछ भी प्राप्त हो उतने से ही संतोष कर लेना श्रेयस्कर है। क्योंकि अत्यंत विनाशकारी है असंतोष का परिणाम।

By Edited By: Published: Sat, 04 May 2013 12:48 PM (IST)Updated: Sat, 04 May 2013 12:48 PM (IST)
असंतोष का परिणाम अत्यंत विनाशकारी

गया। श्री शिरडी साईं संध्या मंदिर स्थित द्वारका माई सभागार से साप्ताहिक प्रवचन करते हुए श्री साईं चरणानुरागी भाई डा. कुमार दिलीप सिंह ने कहा कि कर्मफलजनित प्रारब्ध एवं प्रभु-कृपा से जो कुछ भी प्राप्त हो उतने से ही संतोष कर लेना श्रेयस्कर है। क्योंकि अत्यंत विनाशकारी है असंतोष का परिणाम।

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गोस्वामीकृत रामचरित मानस का आश्रय कर प्रसंग देखें तो पता चलेगा कि संसार के सारे वैभव जिसके करतलगत हुए असंतोष रूपी रोग से पीडि़त वह चक्त्रवर्ती सम्राट प्रतापभानु भी अमर होने की लालसा में कपट मुनि के चक्कर में पड़ भयउ निसाचर सहित समाजा अर्थात रावण बन बैठा सत्य है, स्वरूप बदलने मात्र से स्वभाव नहीं बदलता। राक्षस बन जाने के उपरांत भी न तो उसके असंतोष और ना ही मृत्यु पर विजय पाने की कामना में कोई कमी आई। कठिन तपस्या से शिवजी एवं ब्रव0161ा जी को प्रसन्न कर उसने फिर वही वर मांगा। हम काहू के मरहि न मारे, बानर मनुज जाति दुई बारे अर्थात् वानर और मनुष्य (जो हमारा भोजन हैं) को छोड़ हम किसी के मारे मरे नहीं अर्थात अमर रहें।

स्पष्ट है, सर्वशक्तिमान किंतु विविध चारित्रिक असंतोष के अधीन रावण बना प्रतापभानु करुणानिधि भगवान के प्राकट्य अर्थात अपने सर्वनाश का विविध रूप में स्वयं ही महाकारण बन बैठा।

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