नवरात्रि 2018: चौथे दिन करें मां के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा
नवरात्र में देवी के नौ स्वरूपों की पूजा होती है जिसमें से चौथे दिन उनके कुष्मांडा रूप का पूजन कैसे करें आैर उसका क्या महत्व है ये जानें पंडित दीपक पांडे से।
कौन हैं माता कुष्मांडा
नवरात्रि पूजन के चौथे दिन कुष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन पूजा करने वाले का मन अदाहत चक्र में स्थित माना जाता है, इस कारण उसे पवित्र और स्थिर मन से कूष्मांडा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य करने चाहिए। कहते हैं कि इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः इन्हें ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति माना जाता हैं। कुष्मांडा निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। इनकी आठ भुजायें हैं, अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं। देवी के सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र आैर गदा है। वहीं आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। कुष्मांडा का वाहन सिंह है।
कुष्मांडा की पूजा
देवी कुष्मांडा को लाल पुष्प अत्यंत प्रिय हैं इसलिए उनके पूजन में इन्हें अवश्य अर्पित करें और फल मिष्ठान का भोग लगाएं। कपूर से आरती करें आैर इस मंत्र का जाप करें ‘सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥’ मां कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं, आैर वे थोड़ी सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरण में आए तो उसे सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है। यदि इस दिन एक बड़े माथे वाली विवाहित महिला का पूजनकरके उन्हें दही, हलवा खिलाया जाए आैर बाद में फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट किया जाए तो मां कुष्मांडा अत्यंत प्रसन्न होती हैं।
कुष्मांडा की पूजा का महत्व
इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। शास्त्रों के अनुसार कुष्मांडा की पूजा से ग्रहों के राजा सूर्य से उत्पन्न दोष दूर होते हैं। इसके साथ ही व्यापार, दांपत्य, धन आैर सुख समृद्घि में वृद्घि होती है। मां कुष्मांडा की साधना करने वालों को विभिन्न रोगों से भी मुक्ति मिलती है जिनमें नेत्र, केश, मस्तिष्क, हृदय, मेरुदंड, उदर, रक्त, पित्त आैर अस्थि से संबंधित अनेक रोग सम्मिलित हैं।