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Vat Savitri Vrat 2020: जानें, वट सावित्री व्रत की कथा, पूजा विधि एवं मंत्र

Vat Savitri Vrat 2020 इस दिन माता सावित्री और यमराज देव की पूजा उपासना करने से विवाहित स्त्रियों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

By Umanath SinghEdited By: Published: Thu, 21 May 2020 02:00 PM (IST)Updated: Thu, 21 May 2020 02:00 PM (IST)
Vat Savitri Vrat 2020: जानें, वट सावित्री व्रत की कथा, पूजा विधि एवं मंत्र
Vat Savitri Vrat 2020: जानें, वट सावित्री व्रत की कथा, पूजा विधि एवं मंत्र

दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Vat Savitri Vrat 2020: शुक्रवार को वट सावित्री व्रत है। यह पर्व ज्येष्ठ अमावस्या के दिन मनाया जाता है। इस दिन माता सावित्री और यमराज देव की पूजा उपासना करने से विवाहित स्त्रियों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कालांतर से इस व्रत को सुहागिन स्त्रियां अखंड सुहाग और पति के दीर्घायु के लिए करती हैं। आइए, इसकी व्रत कथा और पूजा विधि जानते हैं-

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वट सावित्री पूजा की व्रत-कथा

पौरणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन काल में भद्र देश में अश्वपति नामक राजा रहते थे, जिनकी कोई संतान नहीं थी। राजा अश्वपति संतान प्राप्ति हेतु गायत्री माता का यज्ञ किया करते थे। एक दिन माता गायत्री प्रकट होकर बोली- हे राजन! तुम्हारी तपस्या पूर्ण हुई। जल्द ही तुम्हारे घर एक रूपवती कन्या का जन्म होगा। राजा अश्वपति के घर सावित्री का जन्म हुआ। जब सावित्री बड़ी हुई तो उनकी मुलाकात राजा द्युमत्सेन से हुई। इसके बाद दोनों ने सहमति से शादी कर ली। हालांकि, राजा द्युमत्सेन की अकारण मृत्यु हो गई। इसके बाद सावित्री अपनी पतिव्रता धर्म से अपने पति को यमराज के प्राण पाश से छुड़ा लाई थीं।

वट सावित्री पूजा विधि एवं मंत्र

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें। इसके बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान कर पवित्र वस्त्र पहनें। अब सबसे पहले सूर्य देव को जल का अर्घ्य दें। इस समय निम्न मंत्र का जाप जरूर करें।

अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते

पुत्रान्‌ पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते

इसके बाद वट यानी बरगद पेड़ की पूजा करें। जब वट वृक्ष को जल का अर्घ्य दें तो निम्न मंत्र का जाप जरूर करें।

यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले

तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मा सदा

इसके बाद रोली की मदद से वट वृक्ष की परिक्रमा करें। अंत में कथा श्रवण करें। दिन भर उपवास रखें। शाम में आरती अर्चना के बाद फलाहार करें। अगले दिन नित्य दिनों की तरह पूजा-पाठ के बाद भोजन ग्रहण करें।


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