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Varalaxmi Vrat 2020: आज है धन-संपदा की देवी वरलक्ष्मी का व्रत, जानें कैसे हुआ माता लक्ष्मी का जन्म

Varalaxmi Vrat 2020 वरलक्ष्मी व्रत के मौके पर जानते हैं कि माता लक्ष्मी का जन्म कैसे हुआ और वे भगवान विष्णु की पत्नी कैसे बनीं?

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Thu, 30 Jul 2020 11:30 AM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2020 01:45 PM (IST)
Varalaxmi Vrat 2020: आज है धन-संपदा की देवी वरलक्ष्मी का व्रत, जानें कैसे हुआ माता लक्ष्मी का जन्म
Varalaxmi Vrat 2020: आज है धन-संपदा की देवी वरलक्ष्मी का व्रत, जानें कैसे हुआ माता लक्ष्मी का जन्म

Varalaxmi Vrat 2020: हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, आज 31 जुलाई शुक्रवार को श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि है। आज वरलक्ष्मी का व्रत है। माता वरलक्ष्मी महालक्ष्मी का अवतार हैं। माता वरलक्ष्मी वरदान देने वाली और मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाली हैं, इसलिए उनका नाम वर और लक्ष्मी के मेल से वरलक्ष्मी पड़ा है। वरलक्ष्मी व्रत के मौके पर जानते हैं कि माता लक्ष्मी का जन्म कैसे हुआ और वे भगवान विष्णु की पत्नी कैसे बनीं?

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माता लक्ष्मी की जन्म कथा

माता लक्ष्मी समस्त संपत्तियों की ​अधिष्ठात्री देवी हैं। भगवान विष्णु जब जब धरती पर अवतार लेते हैं तब तब माता लक्ष्मी भी अवतार लेकर उनकी मदद करती हैं। आइए पढ़ें उनके जन्म की कथा।

भृगु ऋृषि की पत्नी ख्याति से एक सुंदर कन्या का जन्म हुआ​ था। वह सभी शुभ लक्षणों से युक्त थीं, इसलिए उनका नाम लक्ष्मी रखा गया था। जैसे जैसे वे बड़ी हुईं तो उन्होंने भगवान विष्णु के गुणों के बारे में सुना और उनकी भक्ति में लीन हो गईं। वे नारायण को पति स्वरूप में पाने के लिए समुद्र तट पर कठोर तप करने लगीं। हजार वर्ष बीत गए।

एक दिन इंद्र देव उनकी परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु का रूप धारण कर आए और वरदान मांगने के लिए कहा। इस पर उन्होंने विश्वरूप का दर्शन कराने का निवेदन किया। इस पर इंद्र वहां से लज्जित होकर लौट आए। अंत में स्वयं नारायण प्रगट हुए और देवी को विश्वरूप का दर्शन कराया। इसके बाद उन्होंने लक्ष्मी जी को उनकी इच्छानुसार अपनी पत्नी स्वीकार कर लिया।

दूसरी ​कथा

एक बार महर्षि दुर्वासा एक वन में गए। वहां उनको किसी ने एक दिव्य माला भेंट की। वे वहां से चल दिए, तभी रास्ते में इंद्र मिले, जो ऐरावत पर विराजमान थे। महर्षि दुर्वासा ने वो दिव्य माला इंद्र को दे दिया। इंद्र ने उसे ऐरावत के सिर पर डाल दिया, ऐरावत ने उस माला को अपने पैरों से कुचल दिया। यह देखकर महर्षि दुर्वासा क्रोधित हो गए और इंद्र को श्रीहीन होने का श्राप दे दिया।

श्राप के प्रभाव से इंद्र के हाथों से देवलोक चला गया। हर जगह असुरों का राज हो गया, देवता परेशान हो गए। ब्रह्मा जी से मंत्रणा कर सभी भगवान विष्णु के पास पहुंचे। नारायण ने उनको असुरों की मदद से क्षीर सागर के मंथन का प्रस्ताव दिया। देवताओं और असुरों के सागर मंथन से कई चमत्कारी वस्तुएं प्राप्त हुईं। इसी दौरान सफेद कमल पर विराजमान माता लक्ष्मी भी सागर मंथन से प्रकट हुईं। उनको देखकर इंद्र समेत सभी देवता प्रसन्न हुए और उनकी वंदना की।


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