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Shri Radhashtmi Vrat Katha: श्री राधाष्टमी पर जरूर पढ़ें राधा रानी की व्रत कथा, मिलता है लाभ

Shri Radhashtmi Vrat Katha अगर आप आज यह व्रत कर रहे हैं तो यह कथा जरूर पढ़ें... व्रत का फल दोगुना हो जाता है...

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Wed, 26 Aug 2020 06:20 AM (IST)Updated: Wed, 26 Aug 2020 07:02 AM (IST)
Shri Radhashtmi Vrat Katha: श्री राधाष्टमी पर जरूर पढ़ें राधा रानी की व्रत कथा, मिलता है लाभ
Shri Radhashtmi Vrat Katha: श्री राधाष्टमी पर जरूर पढ़ें राधा रानी की व्रत कथा, मिलता है लाभ

Shri Radhashtmi Vrat Katha: एक बार देवर्षि नारद मुनि ने भगवान सदाशिव के श्री चरणों में प्रणाम कर सवाल किया कि श्री राधा देवी लक्ष्मी हैं या देवपत्नी? सरस्वती हैं या अंतरंग विद्या, देवकन्या हैं अथवा मुनिकन्या हैं? कौन है श्री राधा देवी? इस पर सदाशिव बोले- ‘‘हे मुनिवर! किसी लक्ष्मी की क्या बात कहें। कोटि-कोटि महालक्ष्मी उनके चरण कमल की शोभा के सामने कुछ नहीं हैं। इससे अधिक मैं एक मुख से और क्या कहूं? श्री राधा के रूप और गुण के बारे में वर्णन करने में मैं असमर्थ हूं। इनकी महिमा का वर्णन करने में भी मौं लज्जित हो रहा हूं। तीनों लोकों में ऐसा कोई नहीं है जो उनके रूपादि का वर्णन कर पाए। उनके रूप ने तो जगत को मोहने वाले श्रीकृष्ण को भी मोहित कर दिया है।’’

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नारदजी बोले- ‘‘हे प्रभो! श्री राधिका जी के जन्म का माहात्म्य हर तरह से श्रेष्ठतम है। उसको मैं सुनना चाहता हूं।’’ हे महाभाग! श्री राधाष्टमी के विषय मुझे बताएं। श्री राधाजी की पूजा और स्तुति कैसे की जाती है और इनका ध्यान कैसे किया जाता है? यह सब मुझे बताइए। हे सदाशिव! आप मुझे यह बतलाने की कृपा करें।’’ शिवजी ने कहा- ‘‘राजा वृषभानु, वृषभानुपुरी के महान उदार थे। वह सभी शास्त्रों का ज्ञाता थे और महान कुल में उत्पन्न हुए थे। वे श्रीकृष्ण के आराधक थे।

इनकी पत्नी श्रीमती श्रीकीर्तिदा थीं। वे बेहद खूबसूरत थीं। रूप-यौवन में संपन्न वे महान राजकुल में उत्पन्न हुई थीं। वह महालक्ष्मी के समान परम सुंदरी थीं। वे सर्वविद्याओं और गुणों से युक्त थीं। श्रीकीर्तिदा के गर्भ में शुभदा भाद्रपद की शुक्लाष्टमी को मध्याह्न काल में श्रीवृन्दावनेश्वरी श्री राधिकाजी प्रकट हुईं। यह सब सुनने के बाद नारद जी ने पूछा कि अब उन्हें श्री राधाजन्म-महोत्सव में पूजन, भजन और अनुष्ठान के बारे में बताएं।

सदाशिव बोले- ‘‘श्री राधाजन्माष्टमी के दिन अगर व्रत किया जाए और विधिवत उनकी पूजा की जाए राधा जी का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है। इस दिन राधाकृष्ण के मंदिर में ध्वजा, पुष्पमाल्य, वस्त्र, पताका, तोरणादि समेत नाना प्रकार के मंगल द्रव्यों के साथ श्री राधा की पूजा की जानी चाहिए। साथ ही पांच रंगों के चूर्ण से मंडप बनाना चाहिए। यह मंडप मंदिर के बीच बनाना चाहिए। इस मंडप को स्तुतिपूर्वक सुवासित गंध, पुष्प, धूपादि से सुगंधित करना चाहिए। मंडप के भीतर षोडश दल के आकार का कमलयंत्र बनाना चाहिए। इस कमल के मध्य में श्री राधाकृष्ण की पश्चिमाभिमुख मूर्ति स्थापित करें। फिर विधिपूर्वक पूजा की सामग्री लेकर भक्तिपूर्वक उनकी पूजा करें।  


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