जाने क्या है षट्तिला एकादशी के व्रत की तिथि, महूर्त, कहानी और पूजन विधि
शुक्रवार 12 फरवरी 2018 को पड़ रही है षटतिला एकादशी की तिथि। आइये जाने कैसे करें पूजा और क्या है इस व्रत की कथा।
ऐसे करें षट्तिला एकादशी का व्रत
माघ का महीना पवित्र और पावन होता है इस मास में व्रत और तप का बड़ा ही महत्व है। इसी महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षट्तिला कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु का ध्यान रख कर व्रत रखना चाहिए। व्रत करने वालों को गंध, पुष्प, धूप दीप, ताम्बूल सहित विष्णु भगवान की षोड्षोपचार से पूजन करना चाहिए। उड़द और तिल मिश्रित खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग लगाना चाहिए। रात के समय तिल से 108 बार ऊं नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा इस मंत्र का जाप करते हुए हवन करना चाहिए।
तिथि और मुहूर्त
इस वर्ष षटतिला एकादशी का व्रत 12 जनवरी 2018, शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस दिन विधि अनुसार पूजन करना लाभदायी माना गया है। षटतिला एकादशी शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। एकादशी तिथि का आरंभ 11 जनवरी 2018 को रात्रि 07.10 बजे से हो जायेगा और 12 जनवरी 2018 शुक्रवार को रात्रि 09.22 बजे तक रहेगा। एकादशी पारण का समय अगले दिन 13 जनवरी को प्रात: 07.19 से 09.23 तक रहेगा।
षटतिला एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार नारद मुनि त्रिलोक भ्रमण करते हुए भगवान विष्णु के पास वैकुण्ठ धाम पहुंचे। वहां पहुंच कर उन्होंने जिज्ञास व्यक्त करते हुए प्रश्न किया कि प्रभु षट्तिला एकादशी की कथा क्या है और इस एकादशी को करने से कैसा पुण्य मिलता है। तब लक्ष्मीपति भगवान विष्णु ने एक कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मणी रहती थी। वह विष्णुजी में गहन श्रद्धा एवं भक्ति रखती थी, और उनके निमित्त सभी व्रत रखती थी। एक बार इसने एक महीने तक व्रत रखकर उसने नारायण की आराधना की। जिसके प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध तो हो गया परंतु वह कभी ब्राह्मण एवं देवताओं को अन्न दान नहीं करती थी अत: भगवान ने को अनुभव हुआ कि वो वैकुण्ठ में रहकर भी अतृप्त रहेगी इसलिए वे स्वयं एक दिन भिक्षा लेने पहुंच गए। भिक्षा की याचना करने पर उसने स्त्री ने भगवान के हाथों पर एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर रख दिया। कुछ दिनों बाद मृत्यु होने पर वही स्त्री भगवान के धाम पहुंची और उसे रहने के लिए खाली कुटिया और आम का पेड़ मिला। जब उसने इस बारे में प्रश्न किया तो भगवान ने उसे बताया कि ये यह अन्नदान नहीं करने तथा उन्हें मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है। उस स्त्री ने क्षमा मांगते हुए पश्चाताप का मार्ग पूछा तब भगवान ने उसे बताया कि जब देव कन्याएं मिलने आएं तब अपना द्वार तभी खोलना जब वे षट्तिला एकादशी के व्रत का विधान बताएं। स्त्री ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था उस विधि से ब्रह्मणी ने षट्तिला एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न धन से भर गयी। इसी तरह जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल एवं अन्न दान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।