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Shattila Ekadashi Katha: षटतिला एकादशी को सुनें यह कथा, धन-धान्य, समृद्धि के साथ मिलती है नरक से मुक्ति

Shattila Ekadashi Katha षटतिला एकादशी के दिन व्रत रखने वाले व्यक्तियों को षटतिला एकादशी कथा जरूर सुननी चाहिए।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Sat, 18 Jan 2020 07:00 AM (IST)Updated: Mon, 20 Jan 2020 09:05 AM (IST)
Shattila Ekadashi Katha: षटतिला एकादशी को सुनें यह कथा, धन-धान्य, समृद्धि के साथ मिलती है नरक से मुक्ति
Shattila Ekadashi Katha: षटतिला एकादशी को सुनें यह कथा, धन-धान्य, समृद्धि के साथ मिलती है नरक से मुक्ति

Shattila Ekadashi Katha: भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा को समर्पित षटतिला एकादशी 29 जनवरी 2020 दिन सोमवार को है। इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने और भगवान की पूजा करने से धन-धान्य और समृद्धि की प्राप्ति तो होती है, व्यक्ति को नकर से मुक्ति के साथ मोक्ष भी मिलता है। उस व्यक्ति को मृत्यु के पश्चात वैकुण्ठ की प्राप्ति भी होती है। षटतिला एकादशी के पूजा, स्नान आदि के समय काले तिल का प्रयोग अनिवार्य माना गया है। षटतिला एकादशी के दिन व्रत रखने वाले व्यक्तियों को षटतिला एकादशी कथा जरूर सुननी चाहिए। 

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षटतिला एकादशी कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार देवर्षि नारद तीनों लोकों का भ्रमण करते हुए हुए भगवान श्रीहरि विष्णु के लोक में पहुंच गए। उन्होंने भगवान विष्णु को प्रणाम किया और उनसे षटतिला एकादशी की कथा विस्तार से बताने को कहा। नारद जी के आग्रह पर श्रीहरि विष्णु ने उनको षटतिला एकादशी की कथा सुनाना प्रारंभ किया। 

बहुत समय पहले एक ब्राह्मणी थी, जो भगवान विष्णु की परम भक्त थी। वह उनके सभी व्रतों को नियमों का पालन करते हुए पूरा करती थी। एक बार उसने एक माह तक उपवास और व्रत किया, जिससे उसका शरीर कमजोर हो गया। व्रत और उपवास के कारण उसका शरीर शुद्ध हो गया। तब भगवान ने सोचा कि इसने शरीर तो शुद्ध कर लिया, जिससे उसे विष्णुलोक की प्राप्ति हो जाएगी, लेकिन उसकी तृप्ति नहीं हो पाएगी। 

उस ब्राह्मणी ने व्रत और उपवास के समय कभी भी किसी देवता या ब्राह्मण को अन्न या धन दान नहीं किया था। इस कारण से विष्णुलोक में भी उसे तृप्ति प्राप्त करना कठिन था। ऐसे में भगवान विष्णु ने सोचा कि क्यों न वे स्वयं उसके घर भिक्षा लेने जाएं। एक दिन भगवान श्रीहरि स्वयं उसके दरवाजे पर भिक्षा के लिए गए। उन्होंने ब्राह्मणी से भिक्षा मांगा, तो उसने मिट्टी का एक पिंड दे दिया। 

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भगवान विष्णु वहां से अपने धाम लौट आए। मृत्यु के बाद वह ब्राह्मणी विष्णुलोक पहुंची, जहां पर उसे एक आम का पेड़ और एक कुटिया मिली, जो धन-धान्य से रहित थी। वह खाली कुटिया देखकर चिंतित हो गई। तब उसने पूछा कि उसने सभी व्रत विधि विधान से किए, फिर उसे खाली कुटिया और आम का एक पेड़ क्यों मिला।    

तब भगवान विष्णु ने कहा कि तुमने अपने जीवन काल में कभी भी किसी को अन्न या धन दान नहीं किया। इस कारण से तुम्हें यह दंड मिला है। फिर उसने श्रीहरि से क्षमा याचना कर मुक्ति का उपाय पूछा। तब उन्होंने बताया कि तुम अपनी कुटिया का द्वार बंद कर लेना। जब देव कन्याएं तुम से मिलने के लिए आएंगी तो तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत की विधि पूछ लेना। जब वे षटतिला एकादशी व्रत की विधि बता दें, तभी द्वार खोलना। 

उस ब्राह्मणी ने वैसा ही किया जैसा श्रीहरि ने बताया था। षटतिला एकादशी व्रत की विधि जानने के बाद उसने वैसे ही षटतिला एकादशी व्रत किया। व्रत के प्रभाव से वह सुंदर हो गई तथा उसकी कुटिया धन-धान्य ये परिपूर्ण हो गया।

अत: सभी लोगों को षटतिला एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस दिन तिल आदि का दान करें, जिससे दुर्भाग्य, दरिद्रता आदि दूर होंगे और मोक्ष प्राप्त होगा।


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