Masik Krishna Janmashtami 2023: जीवन में पाना चाहते हैं सुख और समृद्धि, तो पूजा के समय जरूर करें ये स्तुति
Masik Krishna Janmashtami 2023 धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से घर में सुख और समृद्धि का आगमन होता है। साथ ही जीवन में मौजूद सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। अतः मासिक कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Masik Krishna Janmashtami 2023: आज 'मासिक कृष्ण जन्माष्टमी' है। यह पर्व हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन साधक भगवान श्रीकृष्ण के निमित्त व्रत रख श्रद्धा भाव से उनकी और श्रीजी की पूजा-अर्चना करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है। साथ ही जीवन में मौजूद सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। अतः मासिक कृष्ण जन्माष्टमी के दिन श्रद्धा भाव से भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी जी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। अगर आप भी भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो मासिक कृष्ण जन्माष्टमी के दिन पूजा के समय श्री बालकृष्ण अष्टकम का पाठ अवश्य करें। आइए, श्री बालकृष्ण अष्टकम का पाठ करें-
बालकृष्ण अष्टकम
यत्कृपादृष्टिसद्वृष्टिसिक्ता भक्ता निरन्तरम् ।
भवन्ति सुखिनः स्निग्धास्तं श्रीबालहरिं भजे ॥ १॥
प्रतिपक्षक्षयात्क्षोण्यामङ्क्षु जातं महद्यशः ।
यत्कृपालेशमात्रेण तं श्रीबालहरिं भजे ॥ २॥
स्वीयविश्लेषजक्लेशो नष्टः पुष्टः सुखोदितः ।
यत्कृपालेशमात्रेण तं श्रीबालहरिं भजे ॥ ३॥
सुस्थिरं सुदृढं पूर्णं प्रियं प्राप्येत सत्वरम् ।
यत्कृपालेशमात्रेण तं श्रीबालहरिं भजे ॥ ४॥
सुसम्पदा सत्कलया सद्विद्यावृद्धिगामिनी ।
यत्कृपालेशमात्रेण तं श्रीबालहरिं भजे ॥ ५॥
अनन्याऽहैतुकी पूर्णा स भक्तिः सुदृढा भवेत् ।
यत्कृपालेशमात्रेण तं श्रीबालहरिं भजे ॥ ६॥
इयत्तारहितो नित्य आनन्दः प्राप्यतेऽनिशम् ।
यत्कृपालेशमात्रेण तं श्रीबालहरि भजे ॥ ७॥
श्रीवल्लभेशपादाब्जे रतिः स्याद्विमला परा ।
यत्कृपालेशमात्रेण तं श्रीबालहरिं भजे ॥ ८॥
अष्टकं श्रीबालहरेरिदं मङ्गलकृत्प्रियम् ।
पठेद्वा शृणुयाद्भक्त्या फलं विन्देत्स वाञ्छितम् ॥ ९॥
कृष्ण अष्टकम
महानीलमेघातिभव्यं सुहासं शिवब्रह्मदेवादिभिः संस्तुतश्च ।
रमामन्दिरं देवनन्दापदाहं भजे राधिकावल्लभं कृष्णचन्द्रम् ॥ १ ॥
रसं वेदवेदान्तवेद्यं दुरापं सुगम्यं तदीयादिभिर्दानवघ्नम् ।
लसत्कुण्डलं सोमवंशप्रदीपं भजे राधिकावल्लभं कृष्णचन्द्रम् ॥ २ ॥
यशोदादिसंलालितं पूर्णकामं दृशोरञ्जनं प्राकृतस्थस्वरूपम् ।
दिनान्ते समायान्तमेकान्तभक्तैर्भजे राधिकावल्लभं कृष्णचन्द्रम् ॥ ३ ॥
कृपादृष्टिसम्पातसिक्तस्वकुञ्जं तदन्तःस्थितस्वीयसम्यग्दशादम् ।
पुनस्तत्र तैः सत्कृतैकान्तलीलं भजे राधिकावल्लभं कृष्णचन्दम् ॥ ४ ॥
गृहे गोपिकाभिर्धृते चौर्यकाले तदक्ष्णोश्च निक्षिप्य दुग्धं चलन्तम् ।
तदा तद्वियोगादिसम्पत्तिकारं भजे राधिकावल्लभं कृष्णचन्द्रम् ॥ ५ ॥
चलत्कौस्तुभव्याप्तवक्षःप्रदेशं महावैजयन्तीलसत्पादयुग्मम् ।
सुकस्तूरिकादीप्तभालप्रदेशं भजे राधिकावल्लभं कृष्णचन्द्रम् ॥ ६ ॥
गवा दोहने दृष्टराधामुखाब्जं तदानीं च तन्मेलनव्यग्रचित्तम् ।
समुत्पन्नतन्मानसैकान्तभावं भजे राधिकावल्लभं कृष्णचन्द्रम् ॥ ७ ॥
अदः कृष्णचन्द्राष्टकं प्रेमयुक्तः पठेत्कृष्णसान्निध्यमाप्नोति नित्यम् ।
कलौ यः स संसारदुःखातिरिक्तं प्रयात्येव विष्णोः पदं निर्भयं तत् ॥ ८ ॥
॥ इति श्रीरघुनाथप्रभुविरचितं श्रीकृप्णचन्द्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥
डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'