श्राद्ध में क्रोध: कदापि नहीं
काम, क्रोध, लोभ और मोह- यह जीवन के चार ऐसे तत्व हैं जिनसे कोई नहीं बचा इनमें क्रोध की ज्वाला दिनोंदिन तीव्र से तीव्रतर होती चली जा रही है पर यह कटु सत्य है कि श्राद्ध में क्रोध एकदम वर्जित है। क्रोध मन से किया गया श्राद्ध, कार्य मानव मन में संताप और क्लेश बढ़ाता है। श्राद्ध से जुड़ी एक कथा है कि परशुराम जी के पिता जमदग्नि तपस्य
गया। काम, क्रोध, लोभ और मोह- यह जीवन के चार ऐसे तत्व हैं जिनसे कोई नहीं बचा इनमें क्रोध की ज्वाला दिनोंदिन तीव्र से तीव्रतर होती चली जा रही है पर यह कटु सत्य है कि श्राद्ध में क्रोध एकदम वर्जित है। क्रोध मन से किया गया श्राद्ध, कार्य मानव मन में संताप और क्लेश बढ़ाता है।
श्राद्ध से जुड़ी एक कथा है कि परशुराम जी के पिता जमदग्नि तपस्या के धनी थे। तपस्या से महर्षि जमदग्नि को कामधेनु की प्राप्ति हुई। एक दिन जमदग्नि ऋषि ने श्राद्ध का जब संकल्प लिया तो उस समय उनकी कामार्थ कामधेनु स्वयं इनके पास आई और मुनि ने श्राद्ध के लिए स्वयं दूध दुहकर एक बड़े पात्र में रखा। साक्षात धर्मदेवता उनकी परीक्षा लेने के लिए क्रोध का रूप धारण करके उस दूध में प्रवेश कर गए जिससे वह दूषित हो गया। दूध के बिना श्राद्ध कैसे हो, मुनि ने अपने योग बल से दूध में प्रविष्ट हुए धर्मदेवता को पहचान लिया तथापि वे कुपित नहीं हुए।
तब धर्मदेवता ब्राह्मण के रूप में प्रकट हुए और बोले- भृगुश्रेष्ठ। मैं तो स्वयं पराजित हो गया। मैंने सुना था कि भृगुवंशीय राजा बड़े क्रोधी होते हैं परंतु आज यह तो एकदम विपरीत हो गया। आज मैं आपके वश में हूं, आपकी तपस्या से डरता हूं। आप क्षमाश्रील महात्मा हैं, मुझपर क्षमा कर कृपा कीजिए। महात्मा जमदग्नि ने श्राद्ध के जिस नियत भाव को प्रदर्शित किया, वह भी क्रोधरहित, यही श्राद्ध करने वाले कर्ता की सही स्थिति है। ब्रह्मचर्य पालन करते हुए काफी कम बोलते हुए शास्त्रीय पद्धति व सुयोग्य ब्राह्मणों के परामर्श में ही श्राद्ध किया जाना चाहिए। श्राद्ध के समय का क्रोध किए अनुष्ठान को निम्न दिशा में प्रेषण कर देता है। ऐसे श्रीमद् भागवत गीता भी इस तथ्य का स्पष्ट व्याख्या करता है कि रजोगुण से उत्पन्न यह काम ही क्रोध है अत: श्राद्ध में तन-मन से परहेज परम आवश्यक है।
-[डा. राकेश कुमार सिन्हा रवि]
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