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ऐसे करें तर्पण जो पितरों को हो अर्पण

श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण तीन ऐसे भारतीय धर्मानुष्ठान हैं जिनके माध्यम से मानव मात्र अपने पूर्वजों को तारता रहता है और स्वयं भी प्रगति पथ पर अग्रसारित रहता है। पर जानकारी के अभाव में तर्पण का सही रूप नहीं किया जाना भारी दुखद है। धर्मशास्त्रों में देव, ऋषि, दिव्य पितृ, यम एवं स्वं पितृ तर्पण के जो नियम-उपनियम बनाए गए हैं। उनकी जानकारी आव

By Edited By: Published: Fri, 20 Sep 2013 08:40 PM (IST)Updated: Fri, 20 Sep 2013 08:43 PM (IST)

गया। श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण तीन ऐसे भारतीय धर्मानुष्ठान हैं जिनके माध्यम से मानव मात्र अपने पूर्वजों को तारता रहता है और स्वयं भी प्रगति पथ पर अग्रसारित रहता है। पर जानकारी के अभाव में तर्पण का सही रूप नहीं किया जाना भारी दुखद है। धर्मशास्त्रों में देव, ऋषि, दिव्य पितृ, यम एवं स्वं पितृ तर्पण के जो नियम-उपनियम बनाए गए हैं। उनकी जानकारी आवश्यक है।

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तर्पण में शिखा बंधन, तिलक के बाद प्राणायाम-प्रणव से पूरक, कुम्भक, रेचक तीन बार करें। इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन किया जाता है। इसके बाद संकल्प मंत्र पढ़कर जल सहित द्रव्य-अक्षतादि पात्र में छोड़ देना चाहिए। अब विश्वदेवों का आह्वान करना चाहिए। इसके बाद देव तर्पण के अंतर्गत 30 देवता व प्राकृतिक देव को तर्पण किए जाने का विधान है। तदुपरांत ऋषियों का आह्वान, ऋषि तर्पण और ऋषि प्रसन्न किया जाता है। इसके बाद दिव्य पितृ आह्वान और फिर उनका तर्पण किया जाता है और इन्हें तिल-कुश मिश्रित जल प्रदान किए जाने का विधान है। इसके बाद अन्य संबंधियों का तर्पण, अपुत्रियों का तर्पण, भीष्म पितामह को तर्पण आदि किया जाता है। अब भगवान सूर्य को अ‌र्घ्य देने का समय आ जाता है। फिर दिक्पालों को नमस्कार करने का विधान है। तदुपरांत विसर्जन और अंत में समर्पण का कार्मानुष्ठान संपन्न किया जाता है। तर्पण में क्रोध, दंभ, चोरी, झूठ आदि निषेध है। योग्य ब्राह्मण के सानिध्य से तर्पण फलकारी रहता है। तर्पण के बाद ब्राह्मण दक्षिण, भोजन व गया गयापाल को दानादि से अवश्य प्रसन्न किया जाना चाहिए।

-[डा. राकेश कुमार सिन्हा रवि]

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