वर्ष 2016 में महाशिवरात्रि का व्रत 7 मार्च को है, आइए जानें इनकी महत्ता व पूजन विधि
शिवरात्रि आदि देव भगवान शिव और मां शक्ति के मिलन का महापर्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जानेवाला यह महापर्व शिवरात्रि साधकों को इच्छित फल, धन, सौभाग्य, समृद्धि, संतान व आरोग्यता देनेवाला है।वैसे तो इस महापर्व के बारे में कई पौराणिक कथाएं मान्य
शिवरात्रि आदि देव भगवान शिव और मां शक्ति के मिलन का महापर्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जानेवाला यह महापर्व शिवरात्रि साधकों को इच्छित फल, धन, सौभाग्य, समृद्धि, संतान व आरोग्यता देनेवाला है।वैसे तो इस महापर्व के बारे में कई पौराणिक कथाएं मान्य हैं, परन्तु हिन्दू धर्म ग्रन्थ शिव पुराण की विद्येश्वर संहिता के अनुसार इसी पावन तिथि की महानिशा में भगवान भोलेनाथ का निराकार स्वरूप प्रतीक लिंग का पूजन सर्वप्रथम ब्रह्मा और भगवान विष्णु के द्वारा हुआ, जिस कारण यह तिथि शिवरात्रि के नाम से विख्यात हुई। महा शिवरात्रि पर भगवान शंकर का रूप जहां प्रलयकाल में संहारक है वहीं उनके प्रिय भक्तगणों के लिए कल्याणकारी और मनोवांछित फल प्रदायक भी है।
महाशिवरात्रि व्रत में उपवास का बड़ा महत्व होता है। इस दिन शिव भक्त शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग का विधि पूर्वक पूजन करते हैं और रात्रि में जागरण करते हैं। भक्तगणों द्वारा लिंग पूजा में बेल-पत्र चढ़ाना, उपवास और रात्रि जागरण करना एक विशेष कर्म की ओर इशारा करता है। पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन भोलेनाथ की शादी मां शक्ति के संग हुई थी, जिस कारण भक्तों के द्वारा रात्रि के समय भगवान शिव की बारात निकाली जाती है। इस पावन दिवस पर शिवलिंग का विधि पूर्वक अभिषेक करने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है। महा शिवरात्रि के अवसर पर रात्रि जागरण करने वाले भक्तों को शिव नाम, पंचाक्षर मंत्र अथवा शिव स्त्रोत का आश्रय लेकर अपने जागरण को सफल करना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था | तथा प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर देते हैं | इसीलिए इस दिन को महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया। भगवान भोलेनाथ सदैव माता पार्वती तथा शिव प्रेतों व पिशाचों के साथ रहते है | शिव का रूप सभी देवो से अलग है | शरीर पर भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में पतित पावनी गंगा मैया तथा मस्तक पर चंद्र कि छटा विराजित रहती है |
महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर शिवभक्त शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर बिल्वपत्र तथा आक के फूल जो आदिनाथ को अत्यंत प्रिय है उनको अर्पित करते हैं, तथा शिव का पूजन करते है और उपवास करते हुए रात्रि को जागरण करते हैं | इस दिन शिवलिंग पर बिल्वपत्र तथा आक के फूल चढाना और पूजन करना हिंदू पौराणिक संस्कृति कि परम्परा का जीता-जगाता उदाहरण है | तथा भक्तो की आस्था का प्रतीक है | इस पर्व को उत्साह और श्रृद्धा से मनाने का करना यह भी है कि इस दिन महादेव शिव की शादी हुई थी इसलिए इस दिन रात्रि में शिवजी की बारात निकाली जाती है। वास्तव में शिवरात्रि का परम पर्व स्वयं परमपिता परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की याद को मानस पटल पर जीवन्त करता है | परमपिता परमात्मा ही ज्ञान के सागर है जो जीव-मात्र को सत्यज्ञान (सत्) द्वारा अन्धकार (तम) से प्रकाश की ओर अथवा असत्य से सत्य की ओर ले जाते हैं | इस दिन सभी जाति, धर्मों तथा वर्णों के मनुष्यों को इन मापदंडो से ऊपर उठाकर भगवान भोलेनाथ का व्रत करते हुए पूर्ण श्रृद्धा से पूजन करना चाहिए |
पूजन विधान:-महाशिवरात्रि के दिन मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बिल्वपत्र, आक धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है तथा उनका पूजन किया जाता है | अगर नजदीक में शिवालय या शिवमंदिर न हो तो घर पर ही शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर उसका विधि पूर्वक पूजन करना उत्तम माना गया है | इस दिन सुबह प्रात:काल में ही नित्य-कर्मों से निवृत होकर भगवान शिव कि आराधना “ऊं नमः शिवाय” मंत्र से सुरु करते हुए पूरे दिन इसी मंत्र का बारम्बार जाप करते रहना चाहिए | इस मंत्र में वह शक्ति है जो किसी अन्य मंत्र में नहीं है अत: श्रृद्धालुओं को चाहिए कि वह शिव पूजन करते समय अधिकाधिक इस मंत्र का जाप करें तथा भगवान भोलेनाथ कि कृपानुभूति प्राप्त करें | तथा इस दिन शिवमहापुराण और रुद्राष्टकम आदि का पाठ अति उत्तम माना जाता है |
महाशिवरात्रि भगवान शंकर का सबसे पवित्र दिन है। इस दिन महाशिव का पूजन तथा स्तुति करने से सब पापों का नाश हो जाता है। तथा मनुष्य के जीवन को नयी दिशा मिल जाती है |