Move to Jagran APP

Lohri 2019: जानें कब आैर क्यों मनाया जाता है फसलों को समर्पित ये पर्व, इसमें खास हैं व्यंजन आैर लोक गीत

Lohri 2019 आज मन जायेगा। ये एक एेसा धार्मिक पर्व है जो समाज से भी गहरे जुड़ा है। इस पर्व का बेटियों के सम्मान से भी गहरा संबंध है। साथ ही ये कुछ खास व्यंजनों आैर लोकगीतों से भी जुड़ा है।

By Molly SethEdited By: Published: Thu, 10 Jan 2019 11:10 AM (IST)Updated: Sat, 12 Jan 2019 12:13 PM (IST)
Lohri 2019: जानें कब आैर क्यों मनाया जाता है फसलों को समर्पित ये पर्व, इसमें खास हैं व्यंजन आैर लोक गीत
Lohri 2019: जानें कब आैर क्यों मनाया जाता है फसलों को समर्पित ये पर्व, इसमें खास हैं व्यंजन आैर लोक गीत

क्या है लोहड़ी का पूरा मतलब

loksabha election banner

लोहड़ी मकर संक्रांति के एक दिन पहले आज को मनाई जाती है। ये उत्तर भारत के पंजाब क्षेत्र का एक प्रसिद्घ त्योहार है। पौष के अंतिम दिन सूर्यास्त के बाद यानि माघ संक्रांति से पहले यह पर्व मनाया जाता है। ये पर्व फसलों के पकने के उत्सव के रूप में तो मनाया ही जाता है साथ ही इसमें माता सती के रूप में एक बेटी के स्वाभिमान से जुड़ी भावना है तो सुंदर मुंदर आैर दुल्ला भाटी की कहानी भी मौजूद है जिसमें बेटियों के सम्मान की झलक मिलती है। इस त्योहार में आने वाले तीनो अक्षरों का एक अलग अर्थ है जिनसे ये त्योहार जुड़ा हुआ है। इनमें 'ल' का अर्थ है लकड़ी, 'ओह' का मतलब है गोहा यानी सूखे उपले, और 'ड़ी' होती है रेवड़ी जिनसे मिल बनता है लोहड़ी।

लोहड़ी पूजा में तीनों का है विशेष अर्थ

इतना ही नहीं पूजा में प्रयुक्त इन तीनों चीजों, लकड़ी, उपले आैर रेवड़ी का एक विशेष अर्थ है जैसे लकड़ी आैर उपले का प्रयोग पौराणिक कथा के संदर्भ में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि में सती होने की याद में अग्नि जलाने के लिए किया जाता है। जबकि रेवड़ी का मूंगफली आैर मक्के के भुने दानों के साथ  अग्नि की भेंट किए जाने वाले समान के तौर पर आैर फिर प्रसाद के रूप में लोगों को बांटने के लिए किया जाता है।

ऐसे होती है पूजा, बनते हैं खास पकवान

इस दिन पूजा करने के लिए लकड़ियों के नीचे गोबर से बनी लोहड़ी की प्रतिमा रखी जाती है। जिसमें गटनि प्रज्‍जवलित करके भरपूर फसल और समृद्धि के लिए उसकी पूजा होती है। इस आग की सभी परिक्रमा करते हैं जिसके दौरान लोग तिल, मक्‍का और गेहूं जैसे अनाज डालते हैं। लोहड़ी पर पूजा के बाद गजक, गुड़, मूंगफली, फुलियां, पॉपकॉर्न का प्रसाद चढ़ाया जाता हैं, फिर इस समय रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि खाए भी जाते हैं। इस दिन मक्की की रोटी और सरसों का साग, गन्ने के रस और चावल से बनी खीर बनाने की और पतंग उड़ाने की भी परम्परा है।

लोहड़ी के लोकगीत

लोहड़ी से कई दिन पहले ही इसके लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे किए जाते हैं। इसी सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है और इसकी परिक्रमा की जाती है। इस दौरान भी ये विशेष गीत गाये जाते हैं जो लोहड़ी से जुड़ी कथाआें पर आधारित होते हैं। इन गीतों में भी बेटियों के प्रति प्रेम की भावना छुपी है। एेसे दो गीत इस प्रकार हैं

पहला गीत- "सुंदर मुंदरिये होय, तेरा कौन बेचारा होय। दुल्ला भट्टी वाला होय, दुल्ले धी बिआई होय। सेर शक्कर पाई होय, कुड़ी दे बोझे पाई होय, कुड़ी दा लाल हताका होय। कुड़ी दा सालु पाटा होय, सालू कौन समेटे होय।"

दूसरा गीत- "देह माई लोहड़ी, जीवे तेरी जोड़ी, तेरे कोठे ऊपर मोर, रब्ब पुत्तर देवे होर, साल नूं फेर आवां।"


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.