ध्वजारोहण से शुरू हुआ नासिक-त्र्यंबक सिंहस्थ कुंभ
त्र्यंबकेश्वर के कुशावर्त तीर्थ व नासिक के रामकुंड पर मंगलवार सुबह 6.16 बजे ध्वजारोहण के साथ ही इस वर्ष के सिंहस्थ कुंभ की शुरुआत हो गई। त्र्यंबकेश्वर में मुख्य अतिथि के रूप में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और नासिक में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस उपस्थित थे।
राज्य ब्यूरो, मुंबई। त्र्यंबकेश्वर के कुशावर्त तीर्थ व नासिक के रामकुंड पर मंगलवार सुबह 6.16 बजे ध्वजारोहण के साथ ही इस वर्ष के सिंहस्थ कुंभ की शुरुआत हो गई। त्र्यंबकेश्वर में मुख्य अतिथि के रूप में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और नासिक में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस उपस्थित थे।
त्र्यंबकेश्वर में शैव संन्यासियों द्वारा किए गए ध्वजारोहण के समय नौसेना के हेलीकॉप्टर से गुलाब की पंखुड़ियां बरसाकर तीर्थयात्रियों का स्वागत किया गया। इस अवसर पर सभी शैव अखाड़ों के प्रमुखों के साथ राज्य की महिला व बाल कल्याण मंत्री पंकजा मुंडे भी उपस्थित थीं, जबकि त्र्यंबकेश्वर से करीब 30 किलोमीटर दूर नासिक में गोदावरी के रामकुंड घाट पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस व वित्तमंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने वैष्णव अखाड़ों के ध्वजारोहण समारोह में हिस्सा लिया। ध्वजारोहण के बाद बड़ी संख्या में जुटे श्रद्धालुओं ने पवित्र गोदावरी नदी में स्नान किया।
अखाड़ा परिषद ने नासिक के पुरोहित संघ द्वारा आयोजित इस समारोह के बहिष्कार की घोषणा की थी। लेकिन दो दिन पहले ही पुरोहित संघ एवं अखाड़ा परिषद के बीच विवाद सुलझा लिया गया था। इसके बावजूद नासिक में ध्वजारोहण के दौरान एक महिला महंत ने महिला संन्यासियों के अखाड़े को मान्यता देने की मांग सार्वजनिक मंच से उठाई।
ध्वजारोहण को सिंहस्थ कुंभ की औपचारिक शुरुआत माना जा रहा है। गुरु व सूर्य के सिंह राशि में प्रवेश करने पर प्रत्येक 12 वर्ष बाद नासिक एवं त्र्यंबकेश्वर में सिंहस्थ कुंभ लगता है। इस बार यह पर्व 25 सितंबर को त्र्यंबकेश्वर में शैव अखाड़ों के शाही स्नान के साथ समाप्त होगा। इससे पहले 29 अगस्त व 13 सितंबर को शैव एवं वैष्णव अखाड़ों के शाही स्नान साथ-साथ क्रमश: त्र्यंबकेश्वर व नासिक में होंगे।
18 सितंबर को सिर्फ वैष्णव अखाड़ों का शाही स्नान नासिक के रामकुंड पर होगा। कुंभ में खासकर शाही स्नान के दौरान भगदड़ को रोकने को लेकर नासिक प्रशासन हर तरह की सावधानी बरत रहा है। आंध्र प्रदेश में मंगलवार को हुई भगदड़ की घटना के बाद प्रशासन और सतर्क हो गया है। 2003 के कुंभ में अंतिम शाही स्नान के दौरान भगदड़ में 37 लोगों की मौत हो गई थी।
12 वर्षों पर खुलता है इस मंदिर का कपाट
नासिक। रामकुंड में मंगलवार को श्री गंगा गोदावरी मंदिर का कपाट 12 वर्षों बाद खुला। मंदिर 11 अगस्त, 2016 तक खुला रहेगा। मंदिर के पुजारी एसडब्ल्यू जादव व अन्य सहयोगियों ने देवी गोदावरी की पूजा-अर्चना की। इस दौरान हजारों श्रद्धालु उपस्थित थे। यह दुनिया का अपनी तरह का पहला ऐसा मंदिर है, जो 12 वर्षो पर कुंभ मेला चक्र के दौरान खुलता है। मंदिर बंद रहने के दौरान लोग बाहर से पूजा करते हैं। श्री गंगा गोदावरी मंदिर के अलावा यहां कुल 108 मंदिर हैं।
नंदी की मूर्ति नहीं
रामकुंड मंदिर भगवान शिव से संबंधित है और कपालेश्वर मंदिर देश का ऐसा पहला मंदिर है, जहां मंदिर के प्रवेश द्वार पर नंदी की जगह एक सांड हैं। 'ऐसा माना जाता है कि एक बार नंदी ने भगवान शिव को परामर्श दिया था कि यदि वे रामकुंड में स्नान करते हैं, तो ब्रह्महत्या के दोष से मुक्त हो जाएंगे। इससे प्रभावित होकर भगवान शिव ने नंदी को अपने गुरुओं में शामिल कर लिया और यही वजह है कि कपालेश्वर मंदिर के बाहर नंदी की कोई मूर्ति नहीं है।
रामकुंड भी एक अति पवित्र जगह है, जहां 14 वर्षो के वनवास के दौरान भगवान राम, सीता तथा लक्ष्मण ने कुछ साल बिताए थे। यहां से आठ किलोमीटर दूर अंजनेरी की पहाडिय़ों में वह स्थान है, जिसे हनुमान का जन्म स्थल माना जाता है।
कुंभमेला के बारे में
देवता एवं दानवो के सागर मंथन के पश्चात अन्य अनमोल रत्नों के साथ अमृत कुंभ भी निकाला था । इस कुंभ को स्वर्ग मे हिफाजत के साथ पहुंचाने की जिम्मेदारी इन्द्रपुत्र 'जयंत' पर सोपी गयी थी । इस शुभ काम मे सुर्य, चंद्र, शनि एवं बृहस्पती (गुरू) बडा योगदान दिया था । अमृतकुंभ स्वर्ग तक ले जाते समय देवताओं को राक्षसों का चार बार सामना करना पडा । इन चार हमलों मे देवताओं ने अमृतकुंभ धरतीपर याने पृथ्वी रखा गया उन चार स्थानोंपर प्रति बारह साल बाद कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है । यह चार स्थान हरिद्वार, प्रयाग , त्र्यंबकेश्वर, और उज्जैन है । कुंभ मेले का जिन राशीयों मे बृहस्पती होने पर कुंभ रखा जाता है उन राशिमें गुरू आनेपर उस स्थानपर कुंभ पर्व का आयोजन होता है । यह ध्यान मे रखना चाहिए की हरिद्वार, प्रयाग, त्र्यंबकेश्वर, उज्जैन स्थानो के अलावा अन्य किसी भी स्थानपर कुंभमेला नही लगता । कुंभपर्व एवं कुंभ योग ज्योतिषी परंपराओं मे कुंभ पर्व को कुंभ राशी एवं कुंभ योग से जोडा गया है । कुंभ योग विष्णू पुरान के अनुसार चार तरह के है ।
जब गुरू कुंभ राशी मे होता है और सूर्य मेष राशी मे प्रविष्ट होता है, तब कुंभ पर्व हरिद्वार मे लगता है ।
जब गुरू मेष राशी चक्र मे प्रवेश करता है और सुर्य, चन्द्रमा मकर राशी मे माघ अमावास्या के दिन होते है तब कुंभ का आयोजन प्रयाग में किया जाता है ।
सूर्य एवं गुरू सिंह राशी में प्रकट होने पर कुंभ मेले का आयोजन नासिक (महाराष्ट्र) में गोदावरी नदी के मुल तट पर लगता है । गुरू कुंभ राशी मे प्रकट होने पर उज्जैन में कुंभ पर्व मनाया जाता है । इस पर्व को सिंहस्थ कहा जाता है ।
त्र्यंबकेश्वर का महिमा
गौतमऋषी की गोहत्या पातक से मुक्ती एवं उनके गाय को जीवनदान यह मिला था । गौतमऋषी ने पवित्र कुशा (दर्भ) से गंगा की धारा को रोककर इस स्थानपर किया था । इसलिये इस स्थान को कुशावर्त कहा जाता है और इसी स्थानसे गौतमी गंगा को 'गोदा' से संबोधित किया जाने लगा । द्वादश ज्योर्तिलिंगो में त्र्यंबकेश्वर का स्थान महत्वपूर्ण है । कई महंतो के यहा पर आखाडे है । नग्न सांधुओ के स्नान की परंपरा आज भी कुशावर्त में जारी है । सिंहस्थ कालखंड में मुल गोदावरी के स्थान का महत्व लगातार सभी शास्त्रों एवं पुराणोंमे बारबार समझाया गया है । यही कारण है, की सिंहस्थ पर्व मे मुल गोदावरी का अनादि जन्मपीठ श्री क्षेत्र त्र्यंबकेश्वर स्थानपर हजारो की संख्या मे साधू, महंन्त एवं महामंण्डलेश्वर आदि अपने अनुयायों एवं छात्रों के साथ सच्चे दिलसे बडे जोश जशन से तिर्थराज कुशावर्त में स्नान करते है, और लाखों की तादाद मे भक्तगण यात्री, जिज्ञासू एवं वैज्ञानिक स्नान, दान, श्राध्द, मुंडनादि धार्मिक विधियो मे सच्चे दिलसे शामील होते है । गोदावरी नदी के तटों की अपेक्षा मुळ गोदावरी का महत्व विशिष्ट है । इस विशेषत: के लिए निम्न शास्त्रवाचन है । मुळ मध्यावसानेशु गोदालभ्य कलीयुगे । अर्थात प्रारंभ में गोदावरी के तीन स्थानो का महत्व अधिक है । प्रथम याने मुळ त्र्यंबकेश्वर, मध्य में नांदेड एवं अंतिम राजमहेन्द्री (आंध्र प्रदेश) यह वह तीन स्थान है । राज महेन्द्री में गोदावरी सातमुखोंसे सागर को मिलती है, परंतु कुंभ मेला त्र्यंबकेश्वर मे ही होता है नाशिक में नही, क्यों की गोदावरी का मुल त्र्यंबकेश्वर है ।