जीवितपुत्रिका व्रत: आज इस समय ऐसे करें पूजा, कल इन चीजों से करें पारण
संतान की लंबी आयु के लिए किया जाने वाला जीवितपुत्रिका व्रत यानी कि जितिया व्रत तीन दिन तक होता है। जानें छठ पूजा की तरह किए जाने वाले इस व्रत की कथा और पूजन विधि...
तीन दिन छठ पूजा की तरह:
जीवितपुत्रिका व्रत संतान की लंबी आयु और उसके खुशहाल जीवन के लिए मातांए रखती हैं। यह व्रत भी छठ व्रत की तरह विधिविधान से किया जाता है। यह अश्विन कृष्ण पक्ष की सप्तमी से शुरू होता है और नवमी को समाप्त होता है। सप्तमी के दिन नहाय खाए, अष्टमी वाले दिन निर्जला व्रत और नवमी को पारण किया जाता है। पहले दिन नहाने के बाद महिलाएं सिर्फ एक बार भोजन करती हैं। इसके बाद पूरा दिन कुछ नहीं खाती हैं। दूसरे दिन खुर जितिया वाले महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं और शाम को पूजा करती हैं। इसके बाद तीसरा दिन अंतिम दिन होता है। इस दिन विधिविधान से पारण होता है। जिसमें झोर भात, मरुवा के आटे की रोटी और नोनी का साग शामिल किया जाता है।
अष्टमी को प्रदोषकाल में पूजा:
आज 13 सितंबर को अष्टमी 01:01 बजे से शुरू होकर रात 10:48 बजे तक है। ऐसे में प्रदोष काल में शुरू होने वाले इस निर्जला व्रत में शाम के समय पूजा होती है। पूजा से पहले गाय के गोबर से आंगन को लीपें। इसके बाद वहीं पर उसके समीप एक छोटा सा तालाब भी बनाएं और एक पाकड़ की डाल वहीं पर लाकर खड़ी कर दें। इसके बाद एक मिट्टी के बर्तन में जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति स्थापित करें। उस मूर्ति को रंगीन रूई, लाल, पीले रंगों आदि से सजाएं। साथ ही धूप, दीप, चावल, फूल, माला एवं विविध प्रकार के नैवेद्यों से पूजा करें। इस पूजा में वंश की वृद्धि और खुशहाली के लिए बांस के पत्तों को शामिल करना अनिवार्य होता है। पूजा के बाद घर के बड़े बुजुर्गों का अशीर्वाद लेना जरूरी होता है। इस व्रत के दिन झूठ नहीं बोलना चाहिए। क्रोध आदि करने से भी बचना चाहिए।
महाभारत काल से जुड़ा है ये व्रत:
यह व्रत महाभारत काल से जुड़ा माना जाता है। महाभारत युद्ध के बाद पिता की मृत्यु से दुखी अश्वथामा पांडवों के शिविर गया। उसने वहां पर सो रहे पांच लोगों की हत्या कर दी। उसे लगा था कि उसने पांडवों को मार दिया। ऐसे में जब उसके सामने पांचो पांडव आकर खड़े हुए तो अश्वथामा को पता चला कि उसने तो द्रौपदी के पुत्रों की हत्या की है। इसके बाद अर्जुन अश्वथामा के इस कृत्य पर क्रोधित हुए और उन्होंने उसे बंदी बनाते हुए उसकी दिव्य मणि छीन ली। ऐसे में अश्वथामा का क्रोध सातवें आसमान पर हो गया और बदले की भावना में सुलग रहा था। जिसकी वजह से उसने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ को नष्ट करने की योजना बनाई। उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को खत्म करने के लिए अश्वथामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। उसे भरोसा था कि ब्रह्मास्त्र उसे धोखा नहीं देगा। ऐसे में भगवान कृष्ण ने उत्तरा को अजन्मी संतान को गर्भ में ही दोबारा जीवित कर दिया। ऐसे में गर्भ में मरने के बाद पुन: जीवित होने वाले उत्तरा के पुत्र का नाम जीवितपुत्रिका पड़ गया था। जिसके बाद से यह व्रत पुत्रों की लंबी आयु के लिएकिया जाने लगा।