Move to Jagran APP

जानें श्राद्घ का महत्व आैर वैज्ञानिक एवम् आघ्यात्मिक पहलू

ऋद्घि विजय त्रिपाठी के अनुसार आश्विन कृष्णपक्ष प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। इसीलिए इस काल में पितरों के निमित्त पितृपक्ष होता है।

By Molly SethEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 11:57 AM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2018 08:33 AM (IST)
जानें श्राद्घ का महत्व आैर वैज्ञानिक एवम् आघ्यात्मिक पहलू
जानें श्राद्घ का महत्व आैर वैज्ञानिक एवम् आघ्यात्मिक पहलू

श्राद्घ का वास्तविक अर्थ 

loksabha election banner

श्राद्ध की मूलभूत परिभाषा यह है कि प्रेत और पितर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाय वही श्राद्ध है। मृत्यु के बाद बिना पिंड दान के मृत व्यक्ति प्रेत संज्ञा यानि जो सूक्ष्म शरीर जो देहांत के बाद धारण किया जाए, में रहता है। पिण्डदान के बाद वह पितरों में सम्मिलित हो जाता है। पितृपक्ष में पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो यव (जौ) तथा चावल का पिण्ड देता है, उससे  वह अपने पूर्वजों का ऋण चुका देता है। ठीक आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से पितृपक्ष प्रारंभ होता है आैर 15 दिन शुक्ल प्रतिपदा तक चलता है। 

पितृ पक्ष का महत्व

28 अंश रेतस् को पितृऋण कहते हैं। 28 अंश रेतस् के रूप में श्रद्धा नामक मार्ग से भेजे जाने वाले पिण्ड तथा जल आदि के दान को ही श्राद्ध कहते है। इस श्राद्ध नामक मार्ग का सम्बन्ध मध्यान्हकाल में पृथ्वी से होता है। इसीलिए मध्यान्हकाल में श्राद्ध करने का विधान है। पृथ्वी पर कोई भी वस्तु सूर्यमण्डल तथा चन्द्रमण्डल के सम्पर्क से ही बनती है। संसार में सोम सम्बन्धी वस्तु विशेषतः चावल और यव हैं। धर्मशास्त्र का निर्देश है कि माता-पिता आदि के निमित्त उनके नाम और गोत्र का उच्चारण कर मंत्रों द्वारा जो अन्न आदि अर्पित किया जाता है, वह उनको प्राप्त हो जाता है। उन्हें गन्धर्वलोक प्राप्त होने पर भोग्यरूप में, पशुयोनि में तृणरूप में, सर्पयोनि में वायु रूप में, यक्षयोनि में पेयरूप में, दानवयोनि में मांसरूप में, प्रेतयोनि में रूधिररूप में, और मनुष्यरूप में अन्न आदि के रूप में उपलब्ध होता है। जब पितर यह सुनते हैं कि श्राद्धकाल उपस्थित हो गया है तो वह एक दूसरे का स्मरण करते हुए मनोमय रूप से श्राद्धस्थल पर उपस्थित हो जाते हैं और ब्राह्मणों के साथ वायु रूप में भोजन करते हैं। यह भी कहा गया है कि जब सूर्य कन्या राशि में आते हैं तो पितर अपने पुत्रों पौत्रों के यहां आते हैं। विशेषतः आश्विन अमावस्या के दिन वह दरवाजे पर आकर बैठ जाते हैं। यदि उस दिन उनका श्राद्ध नहीं किया जाता तो वह शाप देकर लौट जाते हैं। अतः उस दिन पत्र-पुष्प, फल और जल तर्पण से यथाशक्ति उनको तृप्त करना चाहिए। श्राद्ध से विमुख नहीं होना चाहिए। 

कन्या गते सवितरि पितरो यान्ति वै सुतान्। अमावस्या दिने प्राप्ते गृहद्वारं समाश्रिताः। श्राद्धाभावे स्वभवनं शापं दत्वा व्रजन्ति ते।।

श्राद्घ के स्वरूप 

मुख्यतः श्राद्ध दो प्रकार के है। पहला एकोद्दिष्ट और दूसरा पार्वण, लेकिन बाद में चार श्राद्धों को मुख्यता दी गई। इनमें पार्वण, एकोद्दिष्ट, वृद्धि और सपिण्डीकरण आते हैं। आजकल यही चार श्राद्ध समाज में प्रचलित हैं। वृद्धि श्राद्ध का मतलब नान्दीमुख श्राद्ध है। श्राद्धों की पूरी संख्या बारह है- नित्यं नैमित्तिकं काम्य वृद्धिश्राद्ध सपिंडनम्। पार्वण चेति विज्ञेयं गोष्ठ्यां शुद्धयर्थष्टमम्।। कर्मागं नवमं प्रोक्तं दैविकं दशमं स्मृतमृ। यात्रा स्वेकादर्श प्रोक्तं पुष्टयर्थ द्वादशं स्मृतम्।। इनमें नित्यश्राद्ध, तर्पण और पंचमहायज्ञ आदि के रूप में, प्रतिदिन किया जाता है। नैमित्तिक श्राद्ध का ही नाम एकोद्दिष्ट है। यह किसी एक व्यक्ति के लिए किया जाता है। मृत्यु के बाद यही श्राद्ध होता है। प्रतिवर्ष मृत्युतिथि पर भी एकोद्दिष्ट ही किया जाता है। काम्य श्राद्ध, अभिप्रेतार्थ सिद्धर्य्थ अर्थात् किसी कामना की पूर्ति की इच्छा के लिए किया जाता है। वृद्धिश्राद्ध पुत्र जन्म आदि के अवसर पर किया जाता है। इसी का नाम नान्दी श्राद्ध है। सपिण्डनश्राद्ध मृत्यु के बाद दशगात्र और षोडषी के बाद किया जाता है। इसके बाद मृत व्यक्ति को पितरों के साथ मिलाया जाता है। प्रेतश्राद्ध में जो पिण्डदान किया जाता है, उस पिण्ड को पितरों को दिये पिण्ड में मिला दिया जाता है। पार्वण श्राद्ध प्रतिवर्ष आश्विन कृष्णपक्ष में मृत्यु तिथि और अमावस्या के दिन किया जाता है।

श्राद्ध करने के नियम

श्राद्ध के लिए जिन वस्तुओं की आवश्यकता होती है। उनपर भी शास्त्रों में बहुत विचार किया गया है। कौन वस्तु कैसी हो, कहां से ली जाय, कब ली जाय। भोजन सामग्री कैसी हो, किन पात्रों में बनायी जाय, कैसे बनायी जाय। फल, साग, तरकारी आदि में भी कुछ अश्राद्धीय ठहरा दी गयी है। प्रत्येक वस्तु की शुद्धता और स्तर निर्धारित कर दिया है। पुष्प और चन्दन जो निर्धारित है, उन्हीं का उपयोग हो सकता है। इसके अलावा श्राद्ध में कैसे ब्राह्मणों को आमन्त्रित किया जाय, किस प्रकार किया जाय, कब किया जाय और निमन्त्रित ब्राह्मण निमन्त्रण के बाद किस तरह का आचरण करें, भोजन किस प्रकार करें, आदि सभी बातें विस्तार पूर्वक बतलायी गयी हैं। ब्राह्मणों को, उत्तम, मध्यम और अधम तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.