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आज रखा जा रहा है महाव्रत हरतालिका तीज, एेसे करें पूजा

हरतालिका तीज व्रत शिव आैर पार्वती की तरह सदैव एक दूसरे को जीवनसाथी के रूप में पाने की कामना से रखा जाता है। पंडित दीपक पांडे बता रहे हैं इस महाव्रत का विधान।

By Molly SethEdited By: Published: Mon, 10 Sep 2018 04:09 PM (IST)Updated: Wed, 12 Sep 2018 09:48 AM (IST)
आज रखा जा रहा है महाव्रत हरतालिका तीज, एेसे करें पूजा
आज रखा जा रहा है महाव्रत हरतालिका तीज, एेसे करें पूजा

कब है हरतालिका तीज 

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भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज व्रत मनाया जाता है। इस वर्ष यह व्रत 12 सितंबर 2018 को पड़ रहा है। एेसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से कन्याओं को मनोकूल वर तथा सौभाग्यवती महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर स्त्रीयों को हरतालिका तीज एवं व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए। तत्पश्चात पूरे दिन निराहार रहना चाहिए। सायं काल को पुनः स्नान करके शुद्ध एवं उज्ज्वल वस्त्र धारण करके शिव एवं पार्वती की पूजा उपासना करनी चाहिए माता पार्वती को सुहाग का जोड़ा एवं सुहाग सामग्री चढ़ानी चाहिए।  साथ ही भगवान शिव को धोती कुर्ता आदि 5 वस्त्र चढ़ायें आैर अंत में हरतालिका तीज व्रत कथा सुननी चाहिए। हरतालिका तीज की पूजा सर्वप्रथम माता पार्वती ने शिव शंभू को वर रूप में प्राप्त करने के लिए किया था। 

कहलाता है महाव्रत

हरतालिका व्रत को हरतालिका तीज या बड़ी तीजा भी कहते हैं। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन होता है। इस दिन कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रिया गौरी-शंकर की पूजा करती हैं। विशेषकर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में मनाया जाने वाला यह त्योहार करवाचौथ से भी कठिन माना जाता है। एेसा इसलिए है क्योंकि करवाचौथ को चांद देखने के बाद व्रत पूरा हो जाता है, परंतु इस व्रत में पूरे दिन निर्जल रह कर अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत समाप्त किया जाता है। इसीलिए इसे महाव्रत भी कहते हैं। 

इस प्रकार विधिविधान से करें पूजा 

पौराणिक मान्यताआें के अनुसार इस व्रत को विवाहित महिलायें अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मनपसंद वर पाने की इच्छा से करती हैं। सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शंकर के लिए रखा था। इस दिन विशेष रूप से गौरी−शंकर का  पूजन करने के लिए स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं, और नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं। पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शंकर की प्रतिमा स्थापित की जाती है। हरतालिका तीज प्रदोषकाल में किया जाता है।  सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त प्रदोषकाल कहलाते हैं। हरतालिका पूजन के लिए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू या काली मिट्टी की प्रतिमा हाथों से बनाएं। फिर पूजा स्थल जिसे मंडप कहते हैं को फूलों से सजाकर वहां एक चौकी रखें और उस चौकी पर केले का पत्ते बिछा कर इस मूर्ति  स्थापित करें। इसके बाद सभी देवी − देवताओं का आह्वान करते हुए शिव, पार्वती और  गणेश जी का षोडशोपचार पूजन करें। पूजन के पश्चात पार्वती जी पर सुहाग का सारा सामान चढ़ायें। इसके बाद हरतालिका तीज की कथा पढ़ें या सुनें, आैर सुहाग यानि देवी को चढ़ाया सिंदूर अपनी मांग में लगायें। अब रात में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण करें आैर तीन शिव जी आरती की करें। अगले दिन पुन: पूजा करें आैर आरती करके सुहाग लें। समस्त श्रृंगार सामग्री ,वस्त्र ,खाद्य सामग्री ,फल  आैर मिष्ठान्न आदि को किसी सुपात्र अथवा सुहागिन महिला को दान करें। तब व्रत का पारण करके भोजन आैर जल ग्रहण करें। 

ध्यान देने योग्य बातें

इस व्रत में कुछ बतों का ध्यान रखना अति आवश्यक है। हरतालिका व्रत के दौरान व्रत करने वाली महिलाआें के लिए शयन का निषेध है। यह व्रत कुमारी कन्यायें आैर सुहागिन महिलाएं दोनों ही रख सकती हैं, परन्तु एक बार व्रत प्रारंभ करने के जीवन पर्यन्त इसे रखना अनिवार्य। केवल यदि व्रत रखने वाली गंभीर रूप से बीमार हो जाये तो वो व्रत छोड़ सकती है पर उस स्थिति में किसी दूसरी महिला या उसके पति को ये व्रत करना होगा। 


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