Jitiya Puja Mantra And Aarti: आज इस विधि से करें जितिया व्रत की पूजा, जानें मंत्र, आरती एवं महत्व के बारे में
Jitiya Puja Mantra And Aarti आज जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत है। आज के दिन स्नान आदि के बाद व्रत एवं पूजा का संकल्प लेते हैं।
Jitiya Puja Mantra And Aarti: आज जीवित्पुत्रिका व्रत है। इसे हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है। इस व्रत को महिलाएं अपने पुत्र की लंबी उम्र, सुरक्षा और उसकी खुशहाली के लिए किया जाता है। जितिया व्रत के दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं और विधि विधान से पूजा करती हैं। आइए जानते हैं कि जितिया व्रत की पूजा विधि क्या है? जितिया व्रत का मंत्र एवं आरती क्या है।
मंत्र:
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।।
जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया की आरती:
ओम जय कश्यप नन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन तिमिर निकंदन, भक्त हृदय चन्दन॥ ओम जय कश्यप...
सप्त अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस मलहारी॥ ओम जय कश्यप...
सुर मुनि भूसुर वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥ ओम जय कश्यप...
सकल सुकर्म प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व विलोचन मोचन, भव-बंधन भारी॥ ओम जय कश्यप...
कमल समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत सहज हरत अति, मनसिज संतापा॥ ओम जय कश्यप...
नेत्र व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥ ओम जय कश्यप...
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान मोह सब, तत्वज्ञान दीजै॥ ओम जय कश्यप...
जितिया व्रत एवं पूजा विधि:
अष्टमी के दिन प्रात:काल में स्नान आदि के बाद जितिया व्रत और पूजा का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद गन्धर्व राजा जीमूतवाहन की पूजा की जाती है। उनको सरसों का तेल और खल्ली अर्पित किया जाता है। व्रत कथा की चील और सियारिन को भी चूड़ा-दही चढ़ाया जाता है।
अष्टमी के दिन प्रदोष काल में कुश से निर्मित जीमूतवाहन की मूर्ति जल के पात्र में स्थापित किया जाता है। उसके बाद उनको पीली और लाल रुई से सुशोभित कर दें। फिर वंश वृद्धि तथा प्रगति के लिए बांस के पत्तों, धूप, दीप, अक्षत, फूल, माला आदि से उनका पूजन करें। इसके पश्चात मिट्टी और गोबर से मादा चील व मादा सियार की मूर्ति बना लें। उनको सिंदूर लगा दें। खीरा और भींगे केराव का प्रसाद चढ़ाएं। पूजा के बाद जितिया व्रत की कथा, जिसे चिल्हो-सियारो की कथा कही जाती है, उसे सुनें। उसके बाद जितिया की आरती करें। नवमी के दिन सूर्योदय के बाद पारण कर व्रत को पूरा करें। अष्टमी के दिन जल भी ग्रहण नहीं किया जाता है।