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Indira Ekadashi 2021: इंदिरा एकादशी के व्रत से मिलती है पितरों को मुक्ति, जानें व्रत और पूजन की विधि

Indira Ekadashi 2021 इंदिरा एकादशी के दिन पितरों की मुक्ति के लिए भगवान विष्णु के व्रत और पूजन का विधान है। जिन लोगों की कुण्डली में पितृदोष व्याप्त हो उन्हें इंदिरा एकादशी का व्रत जरूर रखना चाहिए। आइए जानते हैं इंदिरा एकादशी के व्रत और पूजन की विधि...

By Jeetesh KumarEdited By: Published: Thu, 30 Sep 2021 12:25 PM (IST)Updated: Sat, 02 Oct 2021 06:00 AM (IST)
इंदिरा एकादशी के व्रत से मिलती है पितरों को मुक्ति, जानें व्रत और पूजन की विधि

Indira Ekadashi 2021: अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन धर्मपरायण राजा इंद्रसेन ने पितर लोक में अपने पिता की मुक्ति हेतु व्रत और पूजन किया था। जिससे उन्हें बैकुण्ठ लोक की प्राप्ति हुई थी। तब से ही इंदिरा एकादशी के दिन पितरों की मुक्ति के लिए भगवान विष्णु के व्रत और पूजन का विधान है। जिन लोगों की कुण्डली में पितृदोष व्याप्त हो, उन्हें इंदिरा एकादशी का व्रत जरूर रखना चाहिए। पंचांग के अनुसार इस साल इंदिरा एकादशी का व्रत 02 अक्टूबर, दिन शनिवार को रखा जाएगा। आइए जानते हैं इंदिरा एकादशी के व्रत और पूजन की विधि...

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व्रत की विधि

इंदिरा एकादशी का व्रत पितर पक्ष में पड़ता है तथा इसका व्रत विशेष रूप से अपने मृत पूर्वजों, पितरों की मुक्ति के लिए रखा जाता है। इसलिए इंदिरा एकादशी का अन्य एकादशियों के व्रत में विशेष स्थान है। विधि के अनुसार इंदिरा एकादशी का व्रत दशमी तिथि से प्रारंभ होता है। इसका पारण द्वादशी तिथि के दिन किया जाता है। इंदिरा एकादशी के व्रत के पहले दशमी तिथि को सूर्यास्त से पहले भोजन कर लेना चाहिए। एकादशी के दिन सुबह उठ कर स्नान आदि से निवृत्त हो कर व्रत का संकल्प लें। भगवान शालिग्राम का पूजन कर दिन भर फलाहार का व्रत रखना चाहिए। व्रत का पारण अगले दिन द्वादशी की तिथि में ब्राह्मणों को भोज और दान दे करना चाहिए।

पूजन की विधि

इंदिरा एकादशी के दिन शालिग्राम के पूजन का विधान है। इस दिन पूजन में सबसे पहले भगवान शालिग्राम को गंगा जल से स्नान करवा कर आसन पर स्थापित करें। इसके बाद उन्हें धूप, दीप, हल्दी,फल और फूल अर्पित करें। इसके बाद इंदिरा एकादशी व्रत की कथा का पाठ करना चाहिए। पितरों की मुक्ति के लिए इस दिन पितृ सूक्त, गरूण पुराण या गीता के सातवें अध्याय का पाठ करना चाहिए। पूजन का अंत भगवान की आरती करके किया जाता है। यदि इस दिन श्राद्ध हो तो पितरों के निमत्त भोजन बना कर घर की दक्षिण दिशा में रखना चाहिए व गाय, कौए और कुत्ते को भी भोजन जरूर कराएं। ऐसा करने से पितरों को यमलोक में अधोगति से मुक्ति मिलती है।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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