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Devutthan Ekadashi 2018: जाने क्या है देव प्रबोधनी एकादशी का महातम्य एेसे करें पूजा

इस वर्ष देव प्रबोधिनी एकादशी 19 नवंबर 2018 को है पंडित दीपक पांडे से जाने इस व्रत का महातम्य।

By Molly SethEdited By: Published: Sat, 17 Nov 2018 04:15 PM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 10:06 AM (IST)
Devutthan Ekadashi 2018: जाने क्या है देव प्रबोधनी एकादशी का महातम्य एेसे करें पूजा
Devutthan Ekadashi 2018: जाने क्या है देव प्रबोधनी एकादशी का महातम्य एेसे करें पूजा

योग निद्रा से जागते है नारायण 

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हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत बहुत महत्व होता है। साल में चौबीस एकादशियां होती हैं आैर अधिकमास या मलमास में इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। आषाढ शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। इसके बाद चातुर्मास के समाप्त होने पर कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन नारायण इस निद्रा से जागते हैं उसी दिन को देवोत्थान, प्रबोधिनी या देव उठावनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन वैष्णव आैर स्मार्त सभी मतों को मानने वाले बड़ी आस्था के साथ व्रत करते हैं।

भगवान को जगाने का श्लोक 

भगवान विष्णु को चार मास की योग निद्रा से जगाने के लिए घण्टा, शंख, मृदंग आदि वाद्यों की मांगलिक ध्वनि के साथ निम्नलिखित श्लोक पढकर जगाया जात है। 

उत्तिष्ठोत्तिष्ठगोविन्द त्यजनिद्रांजगत्पते। त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत् सुप्तमिदंभवेत्॥ उत्तिष्ठोत्तिष्ठवाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे। हिरण्याक्षप्राणघातिन्त्रैलोक्येमंगलम्कुरु॥ जो सामान्य भक्त संस्कृत नहीं बोल पाते वे उठो देवा, बैठो देवा कहकर श्रीनारायण को उठाते है। 

एेसे करें पूजा 

इस दिन श्रीहरि की षोडशोपचार विधि से पूजा की जाती है। इसके लिए प्रातकाल उठ कर शुद्घ मन से भगवान की पूजा का संकल्प करें। अनेक प्रकार के फलों के साथ भोग लगायें। संभव हो तो उपवास रखें अन्यथा केवल एक समय फलाहार ग्रहण करें। इस एकादशी में रातभर जाग कर कीर्तन करने से भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। चार मास से रुके हुए विवाह आदि मांगलिक कार्यो का आरंभ इसी दिन से होता हैं  

देव प्रबोधिनी एकादशी का महत्व 

इस दिन तुलसी विवाह का भी अत्यंत महातम्य है। एेसी भी मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है। पद्मपुराण के उत्तरखण्ड के अनुसार श्री हरि प्रबोधिनी यानि देवोत्थान एकादशी का व्रत करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ तथा सौ राजसूय यज्ञों का फल मिलता है। इस के विधिवत व्रत से सब पाप भस्म हो जाते हैं तथा व्रत करने वाला मरने के बाद बैकुण्ठ जाता है। इस एकादशी के दिन जप तप, स्नान दान, सब अक्षय फलदायक माना जाता है। 


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