Chaitra Navratri 2020 Maa Kushmanda: आज है चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन, जानें मां कूष्मांडा की पूजा विधि, मुहूर्त, मंत्र एवं महत्व
Chaitra Navratri 2020 Maa Kushmanda आज चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन है। आज मां कूष्मांडा की विधि विधान से पूजा होती है।
Chaitra Navratri 2020 Maa Kushmanda: आज चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन है। चैत्र शुक्ल चतुर्थी तिथि को चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन होता है। चैत्र नवरात्रि की चतुर्थी तिथि को मां कूष्मांडा की विधि विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं, उनकी पूजा करने से व्यक्ति के समस्त कष्टों, दुखों और विपदाओं का नाश होता है। मां कूष्मांडा को गुड़हल का फूल या लाल फूल बहुत प्रिय है, इसलिए उनकी पूजा में गुड़हल का फूल अर्पित करें। इससे मां कूष्मांडा जल्द प्रसन्न होती हैं। मां दुर्गा ने असुरों का संहार करने के लिए कूष्मांडा स्वरूप धारण किया था। आइए जानते हैं नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा विधि, मंत्र, पूजा मुहूर्त, महत्व आदि के बारे में।
मां कुष्मांडा पूजा मुहूर्त
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 27 मार्च दिन शुक्रवार की रात 10 बजकर 12 मिनट से हो रहा है, जो 28 मार्च दिन शनिवार की देर रात 12 बजकर 17 मिनट तक है। ऐसे में मां कूष्मांडा की पूजा अर्चना शनिवार की सुबह होगी।
प्रार्थना
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मंत्र
1. सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्य्स्त्राहि नो देवि कूष्माण्डेति मनोस्तुते।।
2. ओम देवी कूष्माण्डायै नमः॥
मां कूष्मांडा बीज मंत्र
ऐं ह्री देव्यै नम:।
कौन हैं मां कूष्मांडा
संस्कृति में कुम्हड़े को कूष्मांडा कहा जाता है, ऐसे देवा का नाम कूष्मांडा पड़ा। देवी को कुम्हड़े की बली दी जाती है। इनकी 8 भुजाएं हैं, इसलिए इनको अष्टभुजा भी कहा जाता है। ये अपनी भुजाओं में कमल, कमंडल, अमृत कलश, धनुष, बाण, चक्र और गदा धारण करती हैं। वहीं, एक भुजा में माला धारण करती हैं और सिंह की सवारी करती हैं।
मां कूष्मांडा की पूजा का महत्व
जो व्यक्ति अनेक दुखों, विपदाओं और कष्टों से गिरा रहता है, उसे मां कूष्मांडा की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। उनके आशीर्वाद से सभी कष्ट और दुख मिट जाते हैं।
पूजा विधि
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को सुबह स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। इसके बाद मां कूष्मांडा का स्मरण करके उनको धूप, गंध, अक्षत्, लाल पुष्प, सफेद कुम्हड़ा, फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान अर्पित करें। अब मां कूष्मांडा को हलवा और दही का भोग लगाएं। फिर उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण कर सकते हैं। पूजा के अंत में मां कूष्मांडा की आरती करें और अपनी मनोकामना उनसे व्यक्त कर दें।