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1200 साल पुराने इस मंदिर पर बरसे हजारों बम इसे नुकसान नहीं पहुंचा सके

जैसलमेर से करीब 130 किलो मीटर दूर भारत पाक सीमा पर स्थित तनोट माता का लगभग 1200 साल पुराना मंदिर कई हमलों के बाद भी जस का तस खड़ा है।

By Molly SethEdited By: Published: Thu, 28 Dec 2017 04:39 PM (IST)Updated: Fri, 29 Dec 2017 09:00 AM (IST)
1200 साल पुराने इस मंदिर पर बरसे हजारों बम इसे नुकसान नहीं पहुंचा सके

चमत्‍कारों का गढ़ 

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राजस्‍थान में भारत और पाकिस्‍तान की सीमा पर स्‍थित तनोट माता का मंदिर वैसे तो हमेशा ही आस्था का केंद्र रहा है, पर 1965 के भारत पाक युद्ध के बाद यह मंदिर देश , विदेश में अपने चमत्कारों के लिए भी प्रसिद्ध हो गया। कहते हैं कि 1965 कि लड़ाई में पाकिस्तानी सेना कि तरफ से करीब 3000 बम गिराए गए पर इस मंदिर पर खरोच तक नहीं आई। इतना ही नहीं मंदिर परिसर में गिरे 450 बम तो फटे तक नहीं। अब इन्‍हें मंदिर परिसर में बने एक संग्रहालय में दर्शन के लिए आने वाले भक्तो के लिए रखवा दिया गया है। साथ ही इस युद्ध के बाद मंदिर की सुरक्षा की जिम्‍मेदारी सीमा सुरक्षा बल ( BSF ) ने लेकर यहां अपनी एक चौकी भी बना ली।

तनोट माता का मूल रूप है पाकिस्‍तान में

इस मंदिर में विराजमान तनोट माता को आवड़ माता के नाम से भी जाना जाता है, जो हिंगलाज माता का एक रूप हैं। इन्‍हीं हिंगलाज माता का शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्‍थित है। हर वर्ष आश्विन और चैत्र नवरात्र में यहां विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है।

मंदिर की कहानी

इस मंदिर के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं उन्‍हीं में से एक है कि बहुत पहले मामडि़या नाम के एक चारण ने संतान प्राप्त करने की लालसा में हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा की। तब प्रसन्‍न होकर माता ने उनके स्वप्न में आकर इच्छा पूछी जिस पर चारण ने कहा कि आप मेरे यहां जन्म लीजिए। माता ने प्रार्थना स्‍वीकार करके अपनी कृपा से चारण को 7 पुत्रियों और एक पुत्र के जन्‍म का आर्शिवाद दिया। उन्हीं सात पुत्रियों में से एक थीं आवड़ जिन्‍होंने विक्रम संवत 808 में चारण के घर जन्म लिया। चारण की सातों पुत्रियां देवीय चमत्कारों से युक्त थी। उन्होंने हूणों के आक्रमण से माड़ प्रदेश की रक्षा की। कालानांतर में माड़ प्रदेश में आवड़ माता की कृपा से भाटी राजपूतों का सुदृढ़ राज्य स्थापित हो गया। राजा तणुराव भाटी ने इस स्थान को अपनी राजधानी बनाया और आवड़ माता को स्वर्ण सिंहासन भेंट किया। ऐसी मान्‍यता है कि विक्रम संवत 828 ईस्वी में आवड़ माता ने अपने भौतिक शरीर के रहते हुए यहां अपनी स्थापना की।


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